वर्षा ऋतु की छटा निराली
वर्षा ऋतु की छटा निराली,
बादलों का घोर गर्जन
सुन जिसे सिहर उठे तन
छा गया पल में अंधेरा,
रात हो ज्यों स्याह काली।
वर्षा ऋतु की….।
झर-झर नभ से गिरता पानी
अनिल में है नई रवानी
गा रहे मयूर वन में,
झूम उठी है डाली-डाली।
वर्षा ऋतु की……।
स्वर्ग के सम सज गई धरती
सुर-गंधर्व को मोहित करती
कुसुमित हुए पुष्प वन-वन में,
खेतों में छायी हरियाली।
वर्षा ऋतु की..।
सावन, मल्हार, कजरी की धुन,
दादुर की टर-टर ध्वनि को सुन
मन उल्लासित होकर झूमे,
गाये कोयल हो मतवाली।
वर्षा ऋतु की…।
तन पर शीतल पड़े फुहार
मध्दम-मद्धम बहे बयार
नन्हे बालक तिरा रहे हैं,
सुंदर नौका कागज़ वाली।
वर्षा ऋतु की छटा निराली।