वर्षागीत
वर्षागीत
// दिनेश एल० “जैहिंद”
कौन है ऐसा जिसे मेघा नहीं सुहाता,,,,,,
बाल-गोपाल शोर मचाते हैं,
युवा-नर-नारी मौज़ मनाते हैं |
सजनी यादों में खो जाती है,
कुँवारे सपनों में रम जाते हैं ||
बूढ़ा भी आसमान में देख मंद-मंद मुस्काता,,,,,
मेंढ़क टर्र-टर्र की आवाज़ लगाते हैं,
झींगुर झन-झन का राग सुनाते हैं |
मीन बेचारी अपनी प्यास बुझाती,
मोर ठुमक-ठुमक नाच दिखाते हैं ||
है कोई ऐसा जिसे बरसा-जल नहीं लुभाता,,,,,
कोयल कू-कू कर गीत गाती है,
गोरैया भी जल में नाच लगाती है |
चातक भी मीठे बोल सुनाते हैं,
मैना झूम-झूम कर खूब नहाती है ||
कौन है ऐसा जो बारिश देख नहीं मुस्कुराता,,,,,
कुकुरमुत्ते भी अब उग आते हैं,
कनचट्टे भी नव जीवन पाते हैं |
कितने नव-जीव धरा पर आते,
ये सब धरती के मान बढ़ाते हैं ||
बिजली की कड़क से बाल-समूह डर जाता,,,,,,
लुप्त नदियाँ प्रकट हो आती हैं,
झरनी भी लय में गुनगुनाती है |
ताल-तलैया सब भर जाते हैं,
तब बाग़-बगिया भी हरसाती हैं ||
सागर भी उफान मार कर ख़ुशियाँ दरशाता,,,,,
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दिनेश एल० “जैहिंद”
जयथर, मशरक, छपरा