वर्दी
आशिष माँ भारती का, कवच से कम इसकी हस्ती नही।
दे मोल कोई खरीद ले, यह मिलती इतनी भी सस्ती नही।।
चाहते भरति सरफ़रोशी की, जो बलिदानिया रचती रही।
अजी वर्दी है यह देश की, सबके जिस्म पर जंचती नही।।
यह मिनमिनाते मेमने को भी, सिंह के स्वरूप में ढाल दे।
यह जोश शौर्य हिम्मत भर कर, समूचे रक्त को उबाल दे।।
मुश्किलों की विसात क्या, यह आती मौत को भी टाल दे।
डर भी भागे डर से जिसके, यह तो काल को भी काल दे।।
यह जीवनदायिनी है सुधा सी, हर एक पर बरसती नही।
अजी वर्दी है यह देश की, सबके जिस्म पर जंचती नही।।
चीर दे दरियाई सीना, कद कंदराओं का भी छोटा करती।
यह नेह देती एक सी, नही भेद नियत कभी खोटा करती।।
मादरे-ए-वतन के लिए, निडर माटी का लाल पैदा करती।
बन के महबूबा अक्सर, निज महबूब को भी शैदा करती।।
है आन शान इसकी निराली, जो ब्यर्थ कुछ खरचती नही।
अजी वर्दी है यह देश की, सबके जिस्म पर जंचती नही।।
फैलाव हिमालय सा बृहद, यह सर हिन्द की बने चेतना।
पल में यही शीतल पवन बन, है हर लेती समस्त वेदना।।
मानवता का पथ पकड़ कर, भर जाती है रिक्त संवेदना।
नित नये नूतन ज्ञान देकर, सिखला देती है लक्ष्य भेदना।।
इतिहास लिखती है, लकीर की फकीर बन तरसती नही।
अजी वर्दी है यह देश की, सबके जिस्म पर जंचती नही।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १०/०४/२०२१)