वर्तमान मेें कन्या पूजन की सार्थकता
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दुष्टों का संहार करने वाली मां दुर्गा के आह्वान के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। राक्षस महिषासुर का दमन करने के लिए उस समय मां दुर्गा की उत्पत्ति की कथा तो हमने सुनी है। लेकिन वर्तमान में भी मां दुर्गा के प्रतिरूप को हम संसार में आने से पहले ही रोक देते हैं खत्म कर देते हैं ।
आज वर्तमान में जहाँ एक तरफ ” कन्या भ्रूण हत्या ” अपने चरमोत्कर्ष पर है वहीं दूसरी तरफ ” कन्या पूजन ” का दिखावा – ढ़कोसला समझ से बाहर है । समाज का संभ्रांत – धनी और पढ़ा – लिखा वर्ग कन्या भ्रूण हत्या में ज्यादा संलग्न है , कन्या को मार कर जीवन से निष्कासित कर सुखी होना और फिर कन्या पूजन के लिए कन्या को आमंत्रित कर उसका आशीर्वाद ले सुख की कामना करना ये दोहरी मानसिकता को दर्शाता है । ये तो वही बात हो गई ‘ चित भी मेरी पट भी मेरी ‘ अपनी सुविधानुसार कन्या को मारना , उसका पूजन करना…इस तरह के दिखावटी लोगों का समाजिक बहिष्कार होना चाहिए इसके लिए हम सबको आगे आना होगा । एक ही रूप स्वीकार होगा वो है कन्या की रक्षा गर्भ में भी बाहर भी , हम सब लोगों के बीच में ऐसे लोग हैं और सम्मानित भी हैं हम सब जानते हैं और चुप रहते हैं सबको चुप्पी तोड़नी होगी । जो कन्या माँ – पत्नी – बहन के रूप में स्वीकार है वो बेटी के रूप में क्यों अस्वीकार है ? ये एक बहुत बड़ा प्रश्न है जिसका जवाब आने वाली पीढ़ियाँ हमसे माँगेंगी जब हम बेटी को मार कर बेटे के लिए बहू ढ़ूंढ़ने जायेंगें…कहाँ से मिलेंगी लड़कियाँ ? अभी से कन्या पूजन के लिए कन्याओं का अभाव दिखाई देने लगा है फिर भी समझ नही आ रहा है , कहीं ऐसा ना हो की संतुलन गड़बड़ा जाए और तब तक बहुत देर हो जाये ।
हम कन्याओं को दिल से स्वीकारें उसको सम्मान दे और देना सिखायें , कहने को हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे हैं लेकिन सोच तो आदिमकाल में भी ऐसी नही थी जैसी इस सदी में है । अरे ! कन्या पूजोगे कैसे जब कन्या को जन्म ही नही लेने दोगे ? और जो मिलेंगीं भी तो तुम्हारी कलुषित सोच के साथ उनका आशीर्वाद फलीभूत होगा ? फिर कन्या पूजन का क्या मतलब ? अगर हम देवी का अस्तित्व स्वीकारते हैं तो ये कैसे भूल जाते हैं की देवी तो मन के अंदर का सब जानती हैं फिर उनसे मन की कामना की उम्मीद किस उम्मीद से रखते हैं ? मेरे हिसाब से वर्तमान में कन्या पूजन का कोई औचित्य नही है हम जब तक अपने दोहरे मापदंडों से मुक्त नही होंगें कन्या पूजन व्यर्थ है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 24/10/2020 )