एक प्रयास अपने लिए भी
वर्तमान में महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसात्मक, अपराधिक घटनाओं को देख कर उनकी सुरक्षा का प्रश्न परिवार, समाज, देश के लिए ही नहीं बल्कि विश्व के लिए भी चिंता का विषय बना हुआ है, लेकिन अफ़सोस इस समस्या का समाधान निकलता नज़र नहीं आ रहा है ,महिलाओं की सुरक्षा की बात करें तो हमें इस कड़वी लेकिन हक़ीक़त को भी स्वीकार करना होता है कि एक नारी के लिए सबसे सुरक्षित उसका घर समझा जाता है लेकिन अफ़सोस आज के दौर में उसके लिए उसका अपना घर भी सुरक्षित नहीं है, तो बाहर वो कितनी सुरक्षित होगी इसका अनुमान स्वयं ही लगाया जा सकता है ।
दिल्ली में हुए बहुचर्चित और वीभत्स निर्भया कांड के इतने वर्ष के उपरांत भी अपराधी कैसे फाँसी की सज़ा से बचते आ रहे हैं ये हम सब देख ही रहे हैं ,और यहां पर ये कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि हमारे देश में कुछ भी नहीं बदला है और ये क्यों नहीं बदला है इस पर गंभीरता से विचार करने की अत्यंत आवश्यकता है ।
वैसे ये हमारे सभ्य समाज के लिए अत्यंत शर्म की बात है कि ऐसे घिनौने कृत्यों की पुर्नवृति होती रहती है और हम जागरूक नागरिक होने का फ़र्ज़ कभी जन आंदोलन तो कभी कैंडलमार्च निकाल कर अदा करते रहते हैं , और वैसे भी अगर इन सबसे अपराध रूकते तो कब के रूक चुके होते, महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार के पीछे अपराधी की मानसिकता कुछ भी हो लेकिन ये वास्तविकता अपनी जगह है कि सदियों से हमारे समाज में नारी को भोग्या के रूप में देखा जाता रहा है यही विशेष कारण है कि दंगा हो कोई युद्ध हो या प्राकृतिक आपदा या आपसी रंजिश सबका खामियाज़ा नारी को ही भुगतना पड़ता है,जहां सबका आसान शिकार नारी ही होती है ,नारी को भोग की वस्तु समझने वाला बलात्कारी नारी की उम्र नहीं देखता, वो ये नहीं देखता कि जिसका वो बलात्कार कर रहा है वो ढाई वर्ष की दूध पीती अबोध बच्ची है,कुंवारी है,विवाहित है या मानसिक रूप से विक्षिप्त या वृद्धा है उसे नारी रूप में बस भोग्या नज़र आती है वो नारी रूपी वस्तु जिसे कहीं से भी उठा कर उससे मनमानी की जा सकती है, उसे अपनी इच्छानुसार नोचा खसोटा तो कभी तेज़ाब फेंक कर काट कर मार कर जला कर ख़त्म किया जा सकता है ।
इसे विडम्बना ही कहेंगे कि आज इंटरनेट युग में स्मार्ट फोन और सहजता से उपलब्ध पोर्न साइडो ने रही सही नैतिकता को भी ताक़ में रख दिया है, इन दुर्व्यवहार की घटनाओं में सभी वर्ग के लोग दोषी पाये जाते हैं शिक्षित भी और अशिक्षित भी यहां धर्म विशेष का प्रश्न नहीं उठता क्योंकि इंसान की प्रवृत्ति एक सी होती है और सेक्स वो भूख है जो इंसान से उसका विवेक छीन लेती है और सही गलत के अंतर को भी मिटा देती है यहां ये कहने की आवश्यकता नहीं कि कानून पहले से हैं बस ज़रूरत त्वरित कानूनी कार्यवाही और कठोर से कठोर दंड दिये जाने की उचित व्यवस्था करने की है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं को भी अपनी सोच का दायरा विकसित करने की है ,टीवी पर फ़ालतू सीरियल देखने या फोन पर समय बरबाद करने के विपरीत अपनी जागरूकता परिवार के साथ सामाजिक परिवर्तन में दिखाये जाने की है ,आज आवश्यकता महिलाओं को अपनी क्षमताओं को समझने की है, उनके लिए क्या उचित है क्या अनुचित इस बात को जानने की है ,वहीं अपनी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी भी स्वयं उठाने की है,वहीं इसके लिए क्या प्रयास किये जा सकते हैं, उस पर गंभीरता से विचार करने की है चौबीस घंटे कोई आपकी सुरक्षा नहीं कर सकता इसलिए आपकी सुरक्षा आपकी ही सतर्कता और आपकी जागरूकता में निहित है इस बात को समझने की है ,इससे भी आप स्वयं को दुःखद घटनाओं से बचा सकती हैं वहीं माँ रूप में अपने बच्चों को अच्छे संस्कार प्रदान कर सकती है निश्चित ही ये कोशिशें अच्छे समाज का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगी और महिला दिवस की सार्थकता को भी सही मायने में सिद्ध करेंगी ।
डाॅ फौज़िय नसीम शाद