*वर्तमान को स्वप्न कहें , या बीते कल को सपना (गीत)*
वर्तमान को स्वप्न कहें , या बीते कल को सपना (गीत)
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वर्तमान को स्वप्न कहें ,या बीते कल को सपना
( 1 )
बचपन गया जवानी आई ,बूढ़ापन फिर छाया
बदला-बदला दृश्य समूचा, सब दिखने में आया
गए पुरातन साथी सारे ,कोई रहा न अपना
( 2 )
जिनकी गोदी में खेले थे ,उँगली पकड़ चले थे
जिनके रूप सुगंधित साँसों, के क्रम बड़े भले थे
शेष रह गया चित्र टँगा ,उसको ही केवल जपना
( 3 )
नई राह कुछ नए मोड़ ,जीवन में अक्सर आए
नए मिले कुछ लोग नए, उनसे संबंध बनाए
एक नए युग की रचना में, है रोजाना खपना
वर्तमान को स्वप्न कहें ,या बीते कल को सपना
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451