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31 Mar 2022 · 2 min read

वर्णमाला में इंसान की कहानी

वर्णमाला में इंसान की कहानी

अजीब सी दुनिया है
आदमी पहचान नहीं पता खुद को
इस तरह खोया रहता है खुद में …
इष्ट देव से भी सिर्फ़ माँगने का नाता है
उससे भी अपने पाप छिपा लेता
ऊपर से फिर अहम का टीका लगा लेता …
एक ही सपना सदा उसका
ऐसा सुखी मेरा संसार हो
ओत प्रोत से भरा हुआ
औरों से भी आगे रहूँ सदा
कभी किसी की हो ना मुझे
ख़ामख़ा की परवाह भी …
गली कूचे में रहते हैं जो रहें
घर मेरा बस शानदार हो
चलती रहे मेरी ज़िंदगी
छल कपट कुछ भी कर लूँ
ज़माना मुझको बस महान समझे
झमाझम बरसती रहे लक्ष्मी
टकराना कोई न कर पाए मुझ से …
ठहरना मैंने सीखा नहीं
डाली मेरी महफ़ूज़ रहे …
ढाई अक्षर प्रेम के जो कभी मैं बोल दूँ
तो मेरे जैसा विनय शील नहीं कोई
थोड़ा मीठा जो मैं बोल दूँ
प्रभु राम भी मेरे हो जायें…
देना मुझको आता नहीं
धरम दिखावा करना आता
न कोई सच्चा रिश्ता निभाता
पर खुद को महान ही समझता …
फिरकी सी फ़ितरत मेरी
बुरा अच्छा सोचता नहीं
भूल कभी अपनी मानता नहीं
मन मेरा इतना अभिमानी …
यही बातें करनी मुझको आती
दिन रात पाप कमाता
लगा रहता काम विकार में
विषयों के व्यापारों में
शरीर मेरा कब तक देगा साथ
षष्ठ द्रव्यों से बनी ये देह
सब मिट्टी में मिल जाएगी
हथेली ख़ाली ही रह जाएगी
ज्ञात मुझे ये गूढ़ बात होती नहीं …
क्षेत्र कब मानव से तिर्यंच हो जाएगा
श्रुत ज्ञान सब साथ छोड़ जाएगा
ऋषि मुनि कथित वाणी समझ आती नहीं

तो फिर कैसे होगा मेरा उद्धार ?

Language: Hindi
1 Like · 409 Views

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