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2 Jun 2022 · 2 min read

*वरिष्ठ नागरिकों का जीने का अधिकार (हास्य व्यंग्य)*

वरिष्ठ नागरिकों का जीने का अधिकार (हास्य व्यंग्य)
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वरिष्ठ नागरिकों को भला कौन पूछता है ? वरिष्ठ हो ,लेकिन गरिष्ठ भी तो हो ? अब न तुमसे कुछ खाना पच पाता है और न तुम देश को पच पा रहे हो । खाते पीते वरिष्ठ सामाजिक लोग भी वरिष्ठ नागरिकों को अब इसी दृष्टि से देखते हैं । घरों में तो वरिष्ठ नागरिकों को एक कोने में खटिया पर पड़े रहने का उपदेश देने वाले लोगों की संख्या समाज में पहले से ही कम नहीं है ।
लेकिन इन सब में भी एक पेंच है । अगर वरिष्ठ नागरिक रिटायरमेंट के बाद पेंशन पा रहा है और पेंशन की रकम मोटी है तथा बाकी घर का खर्चा भी उस पेंशन की रकम से चलता है तो बुड्ढे की उम्र चाहे जितनी हो जाए ,उसको जिंदा रखने के लिए पूरा परिवार रात-दिन एक कर देगा । बूढ़े को मरने नहीं देगा । उसकी पेंशन को जिंदा जो रखना है ! कुल मिलाकर मामला उपयोगिता का है ।
ले-देकर वह वरिष्ठ नागरिक रहमो-करम पर रह जाते हैं ,जिन बेचारों की जेब में पांच पैसे नहीं होते । केवल चालीस साल पुराने संस्मरण होते हैं या फिर समाज में बैठकर सुनाने के लिए चार उपदेश होते हैं । उपदेश कोई वरिष्ठ नागरिक के श्रीमुख से ही क्यों सुने ? उसके लिए गीता ,रामायण और न जाने कितनी बोध-कथाएं हैं । जरूरत है ,तो किताब खोलो और पढ़ लो । जो उपदेश कथावाचक लोग देते रहते हैं ,जब इन सब की किसी ने नहीं सुनी तो फिर लोग वरिष्ठ नागरिक की ही क्यों सुनेंगे ?
वरिष्ठ नागरिक अपनी जेब में हाथ डालता है ,तिजोरी खोलता है और बैंक की पासबुक को बार-बार जाकर बैंक में भरवाने का प्रयत्न करता है । लेकिन हर बार उसे निराशा ही हाथ लगती है । कहीं से पैसा आए ,तब तो बूढ़े व्यक्ति के हाथ में दिखेगा ? जब तक पैसा नहीं है ,वरिष्ठ नागरिक सिर्फ कहने के लिए वरिष्ठ हैं । खाते पीते वरिष्ठ सामाजिक लोग उनके बारे में निर्ममतापूर्वक यही कहेंगे कि बहुत जी लिए । अब दूसरों को जीने दो।
इसलिए मेरी तो सलाह सब वरिष्ठ नागरिकों से यही है कि चाहे जैसे हो ,अपने हाथ-पैर सही सलामत रखो। चलते-फिरते रहो । दिमाग सही काम करता रहे । वरना अगर ठोकर लगी ,गिर पड़े और हड्डी टूट गई तो कोई प्लास्टर बँधवाने वाला भी नहीं मिलेगा । चतुर लोग यही कहेंगे ” इन हाथ-पैरों से बहुत चल चुके हो । अब व्यर्थ प्लास्टर पर खर्चा क्या करना ? ”
एक प्रश्न यह भी मन में उठता है कि वृद्ध-आश्रम या ओल्ड एज होम सही भी हैं या इनको भी बंद कर दिया जाए ? नौजवानों के लिए काफी पैसा बच जाएगा ? कितना अच्छा होता ,यदि भगवान ने मनुष्य की आयु सौ वर्ष के स्थान पर केवल साठ वर्ष की रखी होती । इधर आदमी वरिष्ठ नागरिक हुआ ,उधर अर्थी तैयार है । लेटो। हम शवयात्रा खुशी-खुशी शमशान लेकर जाते हैं। तुम नई पीढ़ी को चैन से जीने दो ।
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451

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