वरदान(हास्य-कविता)
वरदान
एक हिप्पी कट भक्त ने
खूब करी भगवान की सेवा
चाँदी के चकमक सिक्के चढ़ाए
और नैवेद्य-भोग में खिलाये
दूध,मलाई और मेवा
मौन तपस्या में लीन थे प्रभु
कि नारद कानों में बोल गया
आखिर कबतक टिकते प्रभु
नारद की बातें आँखे खोल गया
भक्त के घनघोर तप से
सिंहासन उनका डोल गया
या चढ़ावे की चकमक से
मन उनका हो डांवाडोल गया
हम गदगद हुए तेरी भक्ति से
प्रसन्न हो प्रभु, भक्त से बोले
माँग, तुझे कैसा वर चाहिये
यथासंभव, शब्दों में शक्कर घोले
भक्त हुआ हैरान,परेशान
देख प्रभु का रूप महान
पलभर प्रसंग को तोला
दोनों हाथ जोड़कर वो बोला
प्रभु,मेरे हिप्पी कट बालों को देख
कुछ यूँ न भरमाइये
वर तो मैं खुद ही हूँ
कहीं से एक कन्या दिलवाइये
-©नवल किशोर सिंह