*वफा का चलन*
चरागे-मुहब्बत बुझाना नहीं।
हमें याद रखना भुलाना नहीं!!
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अगर या मगर से किनारा करो!
बहाने कभी तुम बनाना नहीं!!
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भले घूम लेना ज़माने में’ तुम!
कहीं माँ से’ बढ़कर खज़ाना नहीं!!
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ग़मे ज़िंदगी है कड़ा इम्तिहां!
चले आंधियाँ डगमगाना नहीं!!
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वफा का चलन जो निभाए सदा!
“मुसाफ़िर” उसे आज़माना नहीं!!
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धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”
(9034376051)