“वफादार शेरू”
बात बहुत साल पुरानी है। हमारा परिवार गाँव में ही रहता था। पिताजी गढ़वाल आर्मी में एक सैनिक थे कुछ महीनों पहले ही वे सेवा निवृत होकर घर लौट आए थे और जानी मानी दवा कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड के पद पर थे। हमारी कुल पाँच बीघा जमीन थी। मैं उस समय शायद 9 या 10 वर्ष की रही हूँगी।
मेरा बड़ा भाई कहीं से एक कुत्ते का पिल्ला ले आया था । हम सब गाँव के बच्चे भी उसके साथ खूब खेलते थे । पिताजी प्यार से उसे शेरू पुकारा करते थे। शेरू भी घर में दिनभर खूब धमाचौकड़ी किया करता था ।
शाम को जब पिताजी घर लौटते तो शेरू उनके पैरों से लिपट जाता था,जैसेे दंडवत प्रणाम कर रहा हो।
पड़ोस के गाँव मेंं एक गुंडा प्रवृति का बलबीर सिंह नामका सरदार व्यक्ति था । आस-पास के सभी गाँव के लोग उससे डरते थे । वह गाँव वालों से ही अपने खेतों पर काम करवाया करता था । बदले में अपने खेत की मेढ़ों पर या गन्ने के बीच की उगी घास काटने की इजाजत दे देता था। खेत का काम भी मुफ्त में और खास पतवार की भी चिंता नहीं।
एक दिन पिताजी ने देखा फ़सल सूख रही है तो नहर से थोड़ा सा पानी अपने खेत की तरफ खोल दिया था। बलबीर के नौकर अक्सर नहर और खेतों में चक्कर लगाते ही रहते थे । किसी नौकर ने पानी खुला देखा तो इसकी सूचना सरदार तक पहुंचा दी। बलबीर ने पता लगाया ये किसका खेत है बस उसे जैसेे ही पता चला वो गालियां बकता हुआ और चिल्लाता हुआ हमारे गाँव की तरफ चल पड़ा।
गाँव में दहशत फैल गई। बलबीर आ गया । सब घरों में दुबक गए । बच्चे घर के अंदर बुला लिए गए। सब को लगा आज न जाने किसका खून हो जाय ।
पानी किसने तोड़ा बाहर निकल बे अभी नहर में गाड़ दूँगा ,और भी भद्दी गालियाँ दे रहा था।
पिताजी समझ गए वो इधर ही आ रहा है । पिताजी ने माँ को सारी बात बताई और सबको घर के अंदर रहने को कहा। माँ और हम बच्चे तो मारे डर के काँप रहे थे। माँ पिताजी पर ही क्रोध कर रही थी कि उन्होंने उससे पूछा क्यों नहीं । अब वो नहीं छोडे़गा । माँ पिताजी से कहन रही थी कि उससे माफी मांग लेना, बदले में वो अपने खेत का जो काम देगा कर लूँगी।
पिताजी नहीं माने । वे बोले- “आज उसका पाला एक फौजी से पड़ने वाला है देखता हूँ उसमें कितनी ताकत है।”
बलबीर देखने में हट्टा-कट्टा था । पर शारीरीक परिश्रम तो करता नहीं था , बंदूक और पैसा ही उसकी ताकत थी। वह चीखता हुआ हमारे घर की तरफ ही आ रहा था। गाली तो उसके हर बोल में रहती थी । ……..बाहर निकल ओए ……की औलाद। आज तुझे नहर में ही गाढ़ दूँगा ,ऐसा कहता हुआ वह आंगन में पहुँच गया। शेरु आँगन के एक कोने में आँखें मूँदे पड़ा था । पर मेहमान समझ शांत था। पिताजी बोले , -“आइए सरदार जी सुबह सुबह कैसे आना हुआ ?” सरदार पिताजी के कालर को पकड़कर बोला,- “नहर का पाणी तूने तोड़ा ……के ।” अगले ही क्षण सरदार की कलाई पिताजी की मुट्ठी में कसमसा रही थी आखिर फौजी की पकड़ जो थी । हाँ मैंंने बस अँगुल भर पानी ही अपने खेत के लिए लिया है ,बाकी पानी तो तुम्हारे खेतों में ही जा रहा है। नहर क्या तुम्हारी निजी है जो तुम से परमिशन लेकर ही खेत सींचा जाए । फसल सूख रही हो तो थोड़ा-थोड़ा पानी बाँट लेना चाहिए।
बस यह सुनते ही बलबीर का पारा सातवें आसमान पर था । उसके हाथ तो पिताजी की मुट्ठी में थे जिन्हें वह छुड़ा नहीं पा रहा था तो उसने तेजी से अपनी लात उठाकर पिताजी की जाँघ पर दे मारी।
बस फिर यह देखते ही कोने में पड़ा शेरु बिजली की फूर्ति से कूद पड़ा और सरदार की उसी टाँग को अपने जबाड़े से जकड़ बैठा। पिताजी ने अपनी मुट्ठी खोल दी और एक किनारे बैठ गए । शेरु ने पंजों से सरदार के कपड़े तार-तार कर डाले । जैसे ही बलबीर भागने की कोशिश करता शेरू लपककर टाँग को नुकीले दाँतों से जकड़ लेता । बलबीर दर्द से चीखने लगा और बचाने के लिए गिड़गिड़ा पड़ा । हम बच्चे खिड़की से झाँक रहे थे और खुशी से उछल रहे थे । मन ही मन कहते और काट शेरु इसे । बहुत रौब जमाता है यह ।
खैर पिताजी ने शेरु को पकड़ कर बाँध दिया । बलबीर घाव के दर्द से तड़प रहा था । उसका शरीर पसीने से नहा गया था । उसकी बंदूक दूर गिरी पड़ी थी । पिताजी ने बलबीर को उठाया और चारपाई पर बैठाकर पानी पिलाया । और तुरंत पिसी हुई लाल मिर्च का पाउडर घाव पर लगाकर साफ कपड़े की पट्टी से ढक दिया । बंदूक उठाई और उसे उसके घर तक पहुँचा आए।
शेरू बंधे-बंधे भी बलबीर पर तब तक भौंकता रहा जब तक वो आँखों से ओझल नहीं हो गया। घर लौटकर पिताजी ने शेरु को खोल दिया और उसके सर पर हाथ फिराकर बोले ,-“मेरा शेरु तो शेर है शेर”। शेरु हमेशा की तरह कूँ-कूँ करते हुए पिताजी के पैर चाटने लगा।
उस दिन के पश्चात बलबीर ने कभी पिताजी को पानी लेने से कभी नहीं रोका ।
-गोदाम्बरी नेगी