वफ़ा पर हमारी न उँगली उठाना
वफ़ा पर हमारी न उँगली उठाना
कि रुसवा करेगा हमें कल ज़माना
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ग़ज़ल
क़ाफ़िया- आना,रदीफ़-ग़ैर मुरद्दफ़
अरक़ान-फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
वज्न-122 122 122 122
बहर-बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम
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वफ़ा पर हमारी न उँगली उठाना
कि रुसवा करेगा हमें कल ज़माना
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न आया तुम्हें कोई वादा निभाना
कोई तुमसे सीखे बहाने बनाना
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अगर गिर गये जो नयन से तुम्हारे
कहाँ आँसुओं को मिलेगा ठिकाना
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बना जो रहे हौसला अंत तक तो
कठिन कुछ नहीं आसमां को झुकाना
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कहो बदलियों से इधर से न गुज़रें
हमें रास आये न रोना रुलाना
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मुझे आज भी याद आँगन की तुलसी
तुम्हीं भूल बैठे हो दीपक जलाना
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नमी जब कभी आँख में घर बना ले
सलीके से पलकें उठाना गिराना
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कई बार टूटे जुड़े दिल के रिश्ते
हमें आ गया खूब तुमको मनाना
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राकेश दुबे “गुलशन”
05/11/2016
बरेली