वन से आया विद्यार्थी
कक्षा के आखिरी कोने में सहमा सा ,उपेक्षित ,अकेला किंतु आँखों में सपनों के तारे टिमटिमाते बैठा रहता था छवि ।किसी से कभी बात करते नहीं देखा मास्टरजी ने उसे।मास्टरजी की नजर आधुनिक कैमरे की भाँति चारों तरफ घूमती थी।कोनों पर कैमरा अक्सर रुक जाता था।उस दिन मास्टर जी ने पूछा, क्या नाम है तुम्हारा, धीरे से ,दबे स्वर में बोला- छवि- – -!अरे! सुनाई नहीं दिया ,क्या कहा रवि, नहीं छवि ।अच्छा! छवि। यह बताओ क्या बनोगे बड़े होकर ,जी पुलिस ।
छवि कक्षा दसवीं में था और दूर जंगल से पढने आता था।उसका पढने में बहुत मन था ।ऐसा कोई दिन नही जाता था जिस दिन वो कक्षा में न आता हो।प्रतिदिन शाला में उपस्थित होता था।ऐसा लगता था कि उस नन्हे से बच्चे को पिछले नौ वर्षों में,कौशल विकास की बजाय, चुप रहना सिखाया गया। नौ वर्षों के सदमे से उभरना उसके लिए मुश्किल था।शायद मास्टरजी के सिर पर सींग और बड़े-बड़े दैत्यों सरीके दाँत दिखते होंगे उसे।
मास्टर जी ने छवि को धीरे-धीरे बोलने के लिए प्रेरित किया ।इसके लिए कभी-कभी मास्टरजी कह देते ,”छवि मैं तो तुम्हें ही पढ़ाने आता हूँ।”
छवि को मास्टर जी कक्षा के सभी विद्यार्थियों के साथ लाना चाहते थे।सभी साथी शिक्षकों से छवि के बारे में चर्चा की ।प्री बोर्ड परीक्षा तक छवि ने पढ़ाई में गजब की छलाँग लगाई ।अब वह सबसे बोलने लगा था।उसकी आँखो में सपनों के साथ एक चमक सी आ गई थी।
परीक्षा समाप्त होने के बाद जब मास्टरजी जी वन बिहार को गये तो छवि सड़क किनारे एक उसी के जैसी छोटी सी दुकान चलाता दिखा।
परीक्षा परिणाम आया, मास्टर जी ने सबसे पहले छवि का परिणाम देखा और छवि अच्छे अंकों से पास था ।जिसे ई ग्रेड में रखा गया था वह आज सी ग्रेड के साथ पास हुआ ।मास्टर जी ने मेरे पूछने पर बताया कि उन्होंने तो जिसे नौ वर्षों में अंदर से कमजोर बना दिया गया था बिलकुल मुर्दे जैसा,उसमें सिर्फ जान डाली है(एक अदृश्य शक्ति की प्रेरणा से); मुरझाये पौधे के आसपास की मिट्टी को नरम किया और जरा सा पानी सींचा है !फिर अपना फर्ज निभाता गया ,शेष तो वह स्वयं ही कर गया।वे बोले, मेरा यह साल सफल रहा ;एक कोने में बैठा वन का विद्यार्थी अब समाज में पहला कदम रख चुका है वह जीने की कला सीख रहा है और मेरा मन गदगद हो रहा है ।कैमरा अपना काम करता रहेगा ।
कहानीकार-
मुकेश कुमार बड़गैयाँ,कृष्णधर द्विवेदी