वन की ओर
मत्तगयंद छंद
सात भगण, पदांत दो गुरु
रामहि संग चली सिय कानन, जानत ना पथ की विपदाएँ।
दुर्गम काज बडे़ बन के , कब दानव हाथ लगे पड़ जाएँ॥
शूल मिलैं , नहिं फूल मिलै कछु सोच बिचारि कभी पछताएँ।
जंगल के पशु होवत निर्दय नाम न पूछत खावहिं जाएँ॥
बैन कहे प्रभु ने जब ये मन ही मन मात सिया मुसकाएँ।
कीन्ह बिनोद रमापति यों हमसे समझे सिय धन्य मनाएँ॥
सोनू हंस