वन्य जीव की दुर्दशा
हो गई प्रदूषित नदिया रानी
कैसे साँस ले मीन रानी।
यह मनुष्य ही बंदोबस्त में नही जानी ।
मर मर के जी रहे है जल प्राणी ।
गर्मी में पड़ा है खाली कुँआ ,,
शहरो में उठ रहा है काला धुँआ ।
कटते जा रहे है अँधाधुंध पेड़ ,,
सोच रहा है इंसान बना लू एक अच्छा मेड ।
पेड़ कटे तो पंछी नही ,,
इंसान क्यों नही समझ रहा कि इसके बिना भी हंमारी कश्ती नही ।
वन्य , घरेलू प्राणी की दर्दनिय स्थति ।
कहा है !?हंमे इनके बिना जग में मस्ती ।
इन चहकती दयालु बेजुबान पंछी की आवाज पहचानो
इन प्यासे पंछी और जीव को
चटोरे में पानी और दाना डालो।
✍✍?प्रवीण शर्मा ताल
स्वरचित कापीराइट कविता
दिनाक 04/04/2018
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