वन्दना
वीणा को बजाती नित अलख जगाती, गीत सामवेद गाकर सप्त स्वर झंकार दे
वाणी को दिलाती ज्ञानदा तू मातु श्रीप्रदा हो चक्षु मेरी खोल कर तिमिर बहार दे।
हे वाग्देवी शुभ्रदा तुम्हीं हो पद्मासना मां हिय में निवास करि विमल विचार दे
छन्द छलदम्भ से विरक्त हो सदा लिखूं मैं वीणावादिनी तू ऐसा वर देना शारदे! ।।
पं.आशीष अविरल चतुर्वेदी
प्रयागराज