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19 Jan 2022 · 1 min read

‘वनिता की व्यथा’

मुझको साथ तुम ले जाते,
प्रिय अपने संग वनवास में।
कैसे रहूँ क्योंकर मैं जिऊँ,
बिन प्रियतम रनिवास में।

पुण्य आता कुछ भाग मेरे,
सेविका बन रहती तुम्हारी।
वस्त्र राजसी लगे कंट सम,
है दुखितअर्धांगिनी तुम्हारी।

कंदमूल खा होती प्रसन्न चित,
जो संग प्रिय का मिला होता ।
केश बिखरे से यूँ न होते मेरे,
मलिन मुख मेरा खिला होता ।

हे लखन मेरे उर तुम ही बसे!
स्मरण करूँ पूजूँ मैं बस तुम्हें।
हो रहा है व्यर्थ ही जीना मेरा,
प्रति क्षण खोजती हूँ बस तुम्हें।
©® स्वरचित , मौलिक

Language: Hindi
552 Views
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