वनवासी
वनवासी –
आशीष सनातन दीक्षित जी से महाकाल लौटने की अनुमति लेने के लिए गया सनातन जी बहुत भारी मन से कहते है बाल गोपाल आप आये कितने सुखद अनुभूतियों को लेकर जिसे ओंकारेश्वरवासी कभी विस्मृत नही कर पाएंगे आप पवन के झोंको की सुगंध की तरह आये रहे है खंडवा बाल गोपाल को शिव के प्रतिनिधि प्रतिबिंब के रूप में सदैव स्मरण करेगा आपका जाना प्रेरक पदार्पण का पर्याय है ठीक है मैं आपको जाने की क्या अनुमति दे सकता हूँ सिर्फ शुभकामनाएं और ओंकारेश्वर ॐ का आर्शीवाद दे सकता हूँ ।
आशीष ने चलने की तैयारी कर ली पूरे दो वर्ष महाकाल महादेव से दूर था ओंकारेश्वर का संत समाज ओंकारेश्वर के आस पास सभी मंदिरों के संत गणमान्य सनातन जी के साथ आशीष को बस स्टेशन तक छोड़ने आये आशीष से पुनः आने का विनम्र अनुरोध किया और सम्मान के साथ विदा किया।
आशीष बस में बैठा बैठा दो वर्षों में सलिक राम के आतंक दीपक मित्रा ,माधव होल्कर ,बाबू राव, एव गार्गी माहेश्वरी के विषय मे सोचता रहा कब महाकाल पहुंच गया पता ही नही चला वह सीधे देव जोशी जी के पास गया और उनके आशीर्वाद के बाद त्रिलोचन महाराज के पास आया महाकाल में उसके दो वर्षों की अनुपस्थिति बहुत परिवर्तन आ चुका था।
महादेव परिवार एवं महाकाल युवा समूह द्वारा शहर को स्वछ एव आकर्षक बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जा रहा था तो महाकाल युवा समूह युवाओ में नई चेतना जागृति जागरण करते हुए युवा चेतना कि राष्ट्रीय एव सांमजिक भूमिका के लिए सांस्कारिक पीढ़ियों के निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता जा रहा था।
महादेव परिवार में बाल गोपाल की वापसी सतानंद ,देव जोशी, एव महाकाल के जन समुदाय में नई आशा की किरणों का सांचार नई आशाओं को जन्म देते हुए चुनौतियों को विजित करते संघर्षो की सफलता के नए नए सोपान आयाम स्थापित करता जा रहा था ।
आशीष ने इंटर मीडिएट की परीक्षा का फार्म भरा और परीक्षा की तैयारी में जुट गया नित्य ब्रह्म मुहूर्त में नित्य क्रिया स्नान महाकाल की भस्म आरती एव महाकाल के गर्भ गृह की साफ सफाई एव त्रिलोचन महाराज की शिवपुराण कथा एव परीक्षा की तैयारी यही दिन चर्या आशीष की महाकाल में जारी थी।
महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन बाखूबी कर रहे थे जिसमें आशीष की भगीदारी एक स्वंय सेवक के तौर पर होती उंसे कभी अभिमान नही रहा कि मात्र इक्कीस वर्ष की आयु में ही घर छोड़ कर भागा पारिवारिक विद्वेष के अपमान से मुक्त कर परिवार को सम्मान दिलाने के उद्देश्य से ना जाने कितनों को सम्मान दे गया वह काशी से लेकर महाकाल एव ओंकारेश्वर तक अपरिचित नही था लेकिन सभी लोग उसे बाल गोपाल के नाम से ही जानते और इसी परिचय से उसकी ख्याति भी थी।
परीक्षाएं शुरू हुई उसने परीक्षा दिया और इंटरमीडिएट भी प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण कर लिया बाईस वर्ष की उम्र में इंटरमीडिएट करने के बाद वह स्नातक के लिए तैयारी करने लगा विषय भी चुना संस्कृत गणित एव हिंदी एडमिशन तो कराना नही था स्वाध्याय से ही उसे शिक्षा ग्रहण करनी थी साथ ही साथ वह भरतीय धर्म दर्शन एव सभी धर्मों का भी अध्ययन करना शुरू कर दिया ।
उधर विराज हर वर्ष ओंकारेश्वर आते और ओंकारेश्वर में आदिवासी शिक्षा एव विकास की गतिविधियों को प्रोत्साहित करने सहयोग करते उनकी पत्नी तान्या ओंकारेश्वर आदिवासी कल्यार्थ चलाये जा रहे योजनाओं के लिए स्वयं अनेको कार्यक्रम संचालित कर रही थी ।
ओंकारेश्वर का आदिवासीयों के विकास का संकल्प भी नित नई ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा था लेकिन उसकी निर्धारित सीमा थी खंडवा एव आस पास के क्षेत्र विराज ने एक कोष का निर्माण किया और सनातन दीक्षित जी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि भारत के सभी आदिवासी क्षेत्रों के विषय मे जानकारी एकत्र कर उनके समुचित विकास हेतु ओंकारेश्वर से ॐ की जागृति की जाय।
सनातन जी को प्रस्ताव अच्छा लगा लेकिन इसके लिए पूरे भारत मे भ्रमण कर आदिवासी संस्कृति को जानने समझने के लिए शोध परक अध्यपन की आवश्यकता थी विराज ने बाल गोपाल के विषय मे दीक्षित जी से बात किया दीक्षित जी ने बताया कि बाल गोपाल महाकाल में है ।
विराज ने दीक्षित जी से महाकाल चलने के लिए अनुरोध किया सनातन दीक्षित जी को कोई आपत्ति नही हुई और दोनों महाकाल उज्जैन के लिए रवाना हुए महाकाल पहुचंने पर उनका स्वागत बहुत जोश खरोश के साथ महादेव परिवार एव महाकाल युवा समूह ने किया।
महाकाल दर्शन के बाद विराज ने देव जोशी ,त्रिलोचन महाराज, एव सतानंद के समक्ष आदिवासी संस्कृति को जानाने समझने के लिए भारत भ्रमण की भूमिका प्रस्तुत की और अध्ययन के लिए जो यात्री समिति बनाई गई उसमें देव जोशी, स्वय विराज, त्रिलोचन महाराज, सतानंद एव बाल गोपाल यानी आशीष सम्मिलित थे बाल गोपाल ने अपने स्नातक शिक्षा एव अध्ययन में व्यस्त होने के कारण अपनी असमर्थता व्यक्त अवश्य की मगर विराज द्वारा भारत भ्रमण के एव आदिवासी संस्कृति को जानने समझने के लिए जो योजना प्रस्तुत की गई थी उसमें चार वर्षों में एक निश्चित समय निर्धारित था उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार एव ऋतु मौसम का विशेष ध्यान दिया गया था ।
योजना के अनुसार सबसे पहले चार माह मध्यप्रदेश के जन जातियों के विषय मे ही अध्यपन करना था उसके बाद उड़ीसा राजस्थान महाराष्ट्र दक्षिण भारत पूर्वोत्तर उत्तर प्रदेश विहार आदि राज्य सम्मिलित थे ।
भ्रमण का व्यय ठहरने आदि की व्यवस्था एव आदिवासी समाज के सानिध्य के लिए हर प्रदेश के क्षेत्रों में व्यक्ति निर्धारित कर रखे थे पूरे प्रस्ताव को विराज ने जब प्रस्तुत किया तब किसी को किसी शंका की गुंजाइश नही रही और विराज ने यात्रा की तिथि प्रथम चरण मध्यप्रदेश एवं उड़ीसा की निर्धारित किया और बोले हमे अपना कार्य ग्रहण करना है मेरी छुट्टी समाप्त हो रही है अतः आप लोग निश्चिन्त होकर जाए और प्रथम चरण के अनुभवों से आदिवासी समाज के विकास के लिए अपने विचार रखे आशीष ने एक और व्यक्ति को साथ ले चलने का आग्रह किया वो थे दीना महाराज कुछ शंकाओं के निराकरण के बाद समूह में दीना महाराज को सम्मिलित कर लिया विराज सनातन दीक्षित के साथ ओंकारेश्वर लौट गए और अपने कार्य हेतु लौट गए उनकी छुट्टियां समाप्त हो गयी थी।
प्रथम वर्ष मध्यप्रदेश एव उड़ीसा के जन जातीय समाज के विषय मे अध्ययन करना था निर्धारित समय पर देव जोशी सनातन दीक्षित त्रिलोचन महाराज सतानंद बाल गोपाल तथा दीना महाराज यात्रा पर निकल पड़े सबसे पहले मध्य प्रदेश जन जातीय समाज के अध्ययन हेतु उनका निर्धारित कार्यक्रम था जनजाति समाज की संस्कृति खान पान जीवन शैली एव उनकी मौलिक आस्था पर प्रत्यक्ष जानना समझना था ।
देव जोशी सनातन दीक्षित आदिवासी संस्कृति के अध्ययन यात्रा के मुखिया थे मध्यप्रदेश के जिन जनपदों में आदिवासी निवास करते है उनमें यात्रा शुरू हुए बैतूल होशंगाबाद छिंदवाड़ा बाला घाट झाबुआ अलीराज पुर
की यात्रा किया जनजातियों की संख्या एव वर्ग का अध्यपन किया जिसमें पाया कि-
भील ,गौंड ,बैंगा ,सहरिया ,कोरकू, उरांव ,बंजारा,खैरवार,धानुक ,सौर विझवार ,कंवर,भैना,भातरा , मुंडा ,कमार, हल्वा ,भहरिया नगेशिया,मंझवार,खैरवार ,धनवार जन जातिया है जिनके अपने अपने देवी देवता एव संस्कार अलग अलग है।
पुनः उड़ीसा की जन जातियों के विषय मे जानकारी हासिल किया उड़ीसा में बोडा जन जाती के साथ साथ कुल बासठ जन जातीय समुदायों के विषय मे अध्ययन किया देव जोशी ,सतानंद ,त्रिलोचन महराज दीना बाल गोपाल ने बहुत मेहनत किया प्रथम चरण के आदिवासी संस्कृति को जानने समझने के लिए उड़ीसा अपनी यात्रा के प्रथम चरण के अंतिम पड़ाव उड़ीसा में बोडा जन जाती युवकों की एक संगोष्ठी आयोजित की गई और उनकी समस्या को जानने समझने की कोशिश किया गया आदिवासी युवकों द्वारा अपनी सांमजिक स्तिथि से खिन्नता एव नाराजगी व्यक्त की गई समूह के सभी सदस्यों ने अपने अपने विचार व्यवहारिक तौर पर प्रस्तुत किये बाल गोपाल आदिवासी संस्कृति एव समाज की बारीकियों का गम्भीरता से अध्ययन करता और विशेष तथ्यों को नोट करता जाता बोडा नवयुवकों की सभा मे देव जोशी जी एवं सनातन जी को वक्ता के रूप में अधिकृत किया गया।
पहले देव जोशी जी ने बोलना शुरू किया उन्होंने बताया कि प्रत्येक मानव जो किसी भी समाज का क्यो न हो कितना भी विकसित क्यो न हो जन्म आदि मानव के रूप में ही लेता है और मरता भी है आदि मानव के रूप में अतः सृष्टि का प्रत्येक मानव मूल रूप से आदिमानव यानी आदिवासी है जन्म के बाद वह अपने समाज के अनुसार शिक्षित दीक्षित एव सांस्कारिक होता है मगर मृत्यु के समय वह पुनः अपने आदि स्वरूप में ही जन्म जीवन से मुक्त होता है अतः आदिवासी संसाज मानव सभ्यता का आदि भी है अंत भी अंतर सिर्फ इतना ही है कि आप लोंगो ने स्वंय को जानने पहचानने के अलावा सिर्फ अपनी संस्कृतयों से संतुष्ट है आप शक्तिशाली है आप किसी से किसी मायने में कम नही है आवश्यकता है सिर्फ समय के साथ चलने की और अपने मूल संस्कृतयों के संरक्षण की ऐसा कत्तई नही होना चाहिए कि आप तो समय के साथ चलना शुरू कर दे और अपनी विरासत एवं संस्कृति को ही भूल जाए आदिवासी समाज जब भी अपनी संस्कृतयों की मूल अवधारणा के आवनी आधार पर खड़ा हो समय समाज राष्ट्र के साथ चलना सिख लेगा वही से राष्ट्र समाज की गौरवशाली परम्पराओं की मजबूत कड़ी शुरू होगी एवं बुनियादी तौर पर एक सक्षम सकल्पित समाज राष्ट्र के लिए तैयार होगा।
सनातन दीक्षित जी ने अपने उदबोधन में बताया कि आदिवासी की कोई जाति नही होती वास्तविकता देखी जाय तो सनातन में जाति व्यवस्था थी ही नही महाराज मनु ने राज धर्म एव समाज के संचालन के लिए जो स्मृति लिखी है और जो मनुस्मृति के नाम से जानी जाती है एवं उसे मानव स्मृति भी कहा जा सकता है उसमें कही भी जाति व्यवस्था नही है वहा करमार्जित वर्ण व्यवस्था का वर्णन है ।
मनुस्मृति में जिन चार वर्णों का वर्णन है वह कर्मानुसार है ना कि जन्मानुसार साथ ही साथ सनातन में कर्मानुसार वर्ण बदलने की भी व्यवस्था है यदि ऐसा नही होता तो बाल्मीकि महर्षि बाल्मीकि नही होते और विश्वामित्र ब्रह्मर्षि नही होते ।
अतः जनजातीय समूह के युवाओं ध्यान से सनातन की इस सत्यता को स्वीकार करो स्वंय को पहचानो अपनी संस्कृतयों को अक़्क्षुण रखते हुए राष्ट्र समाज समय की मुख्य धारा में अपनी योग्यता का योगदान करो।
रही बात आदिवासीयो की जाती परम्परा की तो वनों जंगलों में रहते हुए सदा ऋषि महर्षि साधु संतों का सानिध्य ही आदिवासी समाज के साथ रहा है देखा जाय तो आप सभी भारत के दृष्टा मार्गदर्शक जो राज्य एव राजाओं को शिक्षित दीक्षित करते थे एव वनों में निवास करते थे उनके ही समक्ष है अतः किसी भी सांमजिक दुराग्रह का त्याग करते हुए आप सभी अपनी मूल विरासत के साथ समय समाज राष्ट्र के साथ चलना सीखिये यही आपके लिये सुगम सरल मार्ग है सनातन में आप लोंगो को महत्वपूर्ण स्थान सम्मान अभिमान प्राप्त है ।
चार वर्ष के यात्रा कार्यक्रम में प्रथम वर्ष की प्रथम वर्ष की वनवासी बैभव की यात्रा पूर्ण हुई विराज आये और सभी के विचारों को संकलित किया और दूसरे वर्ष असम एव पूर्वोत्तर के
आदिवासियों के विषय मे अध्ययन यात्रा की रूप रेखा तैयार की और चले गए ।
तांन्या विराज की पत्नी जो डॉक्टर भी थी आदिवासियों के विषय मे तैयार किये गए प्रथम अध्ययन संस्करण को देश के महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया भारत के आम जन को आदिवासी संस्कृतयों उनके रीति रिवाजों उनके भोलेपन उनकी राष्ट्रीय सांमजिक निष्ठा के विषय मे नई अवधारणा की जानकारियां भारतवासियों के लिए एक सुखद एहसास जो सुंदर भविष्य को इंगित कर रही थी।
इधर आशीष ने स्नातक प्रथम वर्ष की परीक्षा दिया और बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ।
दूसरे वर्ष की यात्रा के लिए पुनः देव जोशी जी सनातन दिक्षीत जी त्रियोचन महाराज सतानंद महाराज दीना जी एव आशीष पूर्वोत्तर एव असम की यात्रा पर निकल पड़े पूर्वोत्तर में -गारो, सुमि,खासी ,कुकी,देवरी ,बोडो ,भूटिया,अपतानी,लखेर,कछार चकमा ,दिमासा,हाजोंग,हमार,जयंतिया, खामती ,बरमन,
देऊरी,होजई,कचरी,सोनवाल ,लैलूंग,मेच, रंभा अंगामी आदि जनजातियों की बहुलता है यात्रा पर निकले समूह ने
सभी जनजातीय समूहों के तीज त्योहार संस्कृति संस्कारो का अध्ययन नही बल्कि जिया और अनुभव किया तब पूर्वोत्तर के लोग भारत के मूल धारा से अलग थलग थे कारण दुरूह भौगोलिक स्थिति राष्ट्र को आजाद हुये बहुत दिन नही हुये थे और मूल भूत सुविधाओं की कमी जैसे सड़के रेल आदि ना के बराबर थे जिसके कारण राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़ नही पा रहे थे वर्तमान में असम एव पूर्वोत्तर भारत के लिए अभिमान एव पूर्वोत्तर का प्रत्येक नागरिक भारत महान की महिमा है गरिमा का महत्वपूर्ण अंग है।
पूर्वोत्तर प्रवास के दौरान भी देव जोशी ,सनातन दीक्षित एव त्रिलोचन महाराज ने अपने विचार आदिवासी समाज को जागरूक करने में प्रस्तुत किये मगर आशीष ने पूर्वोत्तर के आदिवासी युवाओं के जागृति जागरण के लिए महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किया उसका स्प्ष्ट मानना था कि हर जनजातीय समूह में एक विशिष्ट गुण है जो उसकी पहचान है जैसे कोई आदिवासी समाज जड़ी बूटियों की पहचान एव उनके संरक्षण का विशेषज्ञ है तो कोई वन संरक्षण एव विकास का संबल है तो कोई पशुपालन में महारत है उनकी मूल पहचान को उनके रोजी रोटी शिक्षा से यदि जोड़ दिया जाय तो निश्चत रूप से आदिवासी समाज अपनी मूल संस्कृति एव पहचान के साथ राष्ट्रीय विकास की धुरी बन सकता है।
दूसरे वर्ष की यात्रा समाप्त हुई और देव जोशी ,सनातन दीक्षित जी त्रिलोचन महाराज सतानंद जी दीना जी ने अपने विचार प्रस्तुत किया जिसे विराज ने संकलित किया और डॉ तांन्या ने उसे देश विदेश की महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कराया उस समय टी वी एव वर्तम
मोबाइल एव व्हाट्सएप इंस्टाग्राम ट्यूटर आदि तेज मीडिया का जमाना नही था सिर्फ प्रिंट मीडिया एव रेडियो ही था ।
विराज ने तीसरे वर्ष के लिए दक्षिण भारत को चुना था निर्धारित समय पर देव जोशी, सनातन जोशी,त्रिलोचन महाराज,सतानंद जी आशीष एव दीना महाराज दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले और दक्षिण के आदिवासी समाज के विषय मे जानकारी प्राप्त किया दक्षिण की प्रमुख आदिवासी जातियों में-
गोंड ,रेड्डी ,संथाल ,मुंडा, कोरबा उरांव ,कोल ,बंजारा ,मीणा ,कोली आदि इसके अतिरिक्त जारवा,चेचु, आदि प्रमुख है जो अपने अपने विशिष्ठ जीवन शैली एव कार्य के लिए जाने पहचाने जाते है ।
कुछ जन जात्तीय काफी की खेती करती है तो कुछ दूध का व्यवसाय एव पशुपालन सांमजिक संस्कारो की इनकी अपनी अपनी अलग अलग परम्पराए है जहां तक विवाह आदि के बारे में देखा जाए तो कमोवेश सबमे एक बात महत्वपूर्ण है वैवाहिक सम्बन्धो म
में इनके समाज मे वर बधू की अपनी इच्छाओं को अधिक महत्व दिया जाता है इनके कार्यो के अनुसार देवी देवताओं का स्वरूप एव आराधना पद्धति है इनकी अपनी कला संस्कृति है जिसका इनके लिए बहुत महत्व है दक्षिण भारत की यात्रा समाप्त हुई।
विराज आये और हर वर्ष की भांति सबके विचारों को संकलित किया और डॉ तांन्या ने उसे देश विदेश की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित करवाया तीन वर्ष की यात्राओं में आदिवासियों की संस्कृति संस्कारो एव उनके विचारों जीवन शैली की चर्चा समाचार पत्रों पत्रिकाओं के मध्यम से बहुसंख्यक भारतीयों की निगाहों से विचारों तक पहुंच चुकी थी ।
विराज ने यात्रा के अंतिम चरण में राजस्थान ,महाराष्ट्र ,पश्चिम बंगाल, पंजाब ,हिमांचल, बिहार उत्तर प्रदेश, गोआ आदि राज्यो को चुना था आशीष स्नातक कर चुका था अब परस्नातक करने की तौयारी में था उसने अंग्रेजी से एम ए किया यात्रा के लिए देव जोशी, सनातन दीक्षित, त्रिलोचन महाराज ,सतानंद ,दीना महाराज अपने अंतिम चरण में निकले- मीणा ,भील ,सहरिया,कंजर,कथौड़ी,डामोर,सांसी,वरली ,भील,कोली,हल्बा ,चौथरा,आरोन,मुंडा, चेंचू,संथाली,जंगीतो बथुडी,बिझिया, बीरहौर, खोड़,किसान ,पहाड़ी,कोरवा, सोरिया,पहाड़ियां,चिक,बारीक,गोरैत,बिरजिया,परेया, सावर, बथुडी,बक्सा ,जैनसारी, भेटिया,थारू एव
राजी,किन्नौरा,लाहौलै, गद्दी एव गुर्जर,सवांगवाल ,पंगवाल, खंपा आदि आदिवासियों जनजाति वनवासियों के साथ उनके रहन सहन समाज खान पान के विषय मे बहुत करीब से यात्रा समूह के सदस्यी ने जाना समझा उनकी विशेषताएं उनकी परेशानियां समझी और महाकाल लौट आये।
विराज आये और चौथे चरण की यात्रा की विशेषताओं को यात्रा में सम्मिलित सदस्यों से जाना समझा और संकलित किया और पुनः चारो चरणों के संयुक्त अनुभव को संकलित किया और रेडियो कार्यक्रम की यात्रा कार्यक्रम में यात्रा समूह के सभी सदस्यों के साक्षात्कार अनुभव एव भारत के बिभन्न क्षेत्रों के वनवासी समाज की संस्कृतयों संस्कारो विशेषताओं एव उनकी समस्याओं तथा उनके निवारण हेतु विचार सुझाव आदि पर सम्पन्न कराया और ओंकारेश्वर में चलाए जा रहे आदिवासी कल्यार्थ कार्यक्रम में यात्रा समूह के सुझावो को लागू करवाया विराज के विशेष प्रायास एव देव जोशी, सनातन दिक्षित ,त्रिलोचन,महराज सतानंद ,दीना महाराज के अथक प्रयास से वनवासी समाज अखिल भारतीय स्तर पर जागरूक हुआ और समाज राष्ट्र में समयानुसार अपनी जिम्मेदारियों के लिए जिम्मेदार एव सजग हुआ डॉ तांन्या ने ओंकारेश्वर में तरुण बेटे के नाम तरुण आदिवासी चिकित्साकय की स्थापना की महाकाल एव ओंकारेश्वर में भी समन्वय एव संबाद का सकारात्मक शुभारंभ हुआ विराज ने कहा हर प्राणी जन्म से मृत्यु तक जीवन यात्रा के बिभन्न पड़ाव पर जाता ठहरता और चल देता है मगर जो जीवन यात्रा में सार्थक उद्देश्यों की अंतर यात्रा से समाज को अपने जन्म एव जीवन को सार्थकता प्रदान करता है वही जन्म जीवन धन्य है जिसे समाज समय धरोहर के रूप में संजोये रखता है आप सभी ने वनवासी कल्याणार्थ जो बहुमुल्य योगदान दिया है वह बनवासी समाज के लिए धन्य धरोहर है।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।