वतन
वतन ऐसा कि सब देता रहा हूँ
उठा कर सिर सदा जीता रहा हूँ
हलाली कर रहे गद्दार जो अब
तभी उपचार भी करता रहा हूँ
बसा है प्यार दिल में रोज मेरे
लुटाने को बना साझा रहा हूँ
लहू मेरा बहा है अब तलक ही
मुहब्बत का बना प्यासा रहा हूँ
मदद सबकी हमेशा ही करूँ मैं
सदा ही दर्द को पीता रहा हूँ
करूँ तल्लीन हो सेवा वतन की
विनय का भाव मैं रखता रहा हूँ
हमेशा शान्ति का कहला प्रदाता
सबक यह शान्ति का बँचता रहा हूँ
भलाई का जमाना है नहीं अब
निपट बन कर भला करता रहा हूँ
दिखा कर होशियारी विश्व को अब
सरासर झूठ ही कहता रहा हूँ
दिये है जख्म सबको अनगिनत जब
किये की ही सजा भुगता रहा हूँ
जगदगुरु विश्व में मेरा वतन तो
कदम पर चल जगत झुकता रहा हूँ