वतन के लिए ही मुहब्बत लिखी है।
गज़ल
काफिया- अत
रदीफ़- लिखी है
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122……122……122…….122
खुशी धन व दौलत इज्ज़त लिखी है।
वतन के लिए ही मुहब्बत लिखी है।
मरेंगे जियेंगे वतन पर …….ही यारो,
वतन के लिए ही तो चाहत लिखी है।
नहीं हीर रांझा का कोई भी सानी,
मुहब्बत की ऐसी इबारत लिखी है।
वबा रूप है एक कहने को सबके,
खुदा ने ये बेशक कयामत लिखी है।
खुदा के लिए सबने सजदे लिखे है,
इंसा को किसी ने इबादत लिखी है।
तुम्हें देखता हूँ तो लगता है ऐसे,
तुम्हारी ही आँखों में हसरत लिखी है।
तुझे चाहता हूँ मैं जी जाँ से ‘प्रेमी’,
फ़साना नहीं ये हकीकत लिखी है।
…….✍️ प्रेमी