वतन के तराने
वतन के तराने सुनाएंँ सभी
सदा स्नेह- गंगा बहाएंँ सभी
लहू कर समर्पित वतन के लिए
वतन अस्मिता को बचाएंँ सभी।।
मलिन पुष्प रौनक बढ़ाते नहीं
जहाँ में किसी काम आते नहीं
निराशा जिसे ज़िन्दगी में मिली
कभी उम्र भर मुस्कराते नहीं।।
पसीना बहाकर खिलाता हमें
कठिन साधना से जिलाता हमें
मुसीबत सदा ही उठाकर श्रमिक
सुकूँ का शहद नित पिलाता हमें।।
बड़ा आदमी वह नहीं नाम से
मुहब्बत उसे थी खुदा राम से
मिसाइल पुरुष नेक इंसा रहा
सभी जानते हैं उसे काम से।।
डॉ.छोटेलाल सिंह ‘मनमीत’