वतन की चाह
चाहत ये वतन की तो दिल से न निकलती है
अब खुश्बू-ए-मिट्टी से हर सांस महकती है
हम जाएँ कहीं लेकिन इसकी ही इबादत में
दिन मेरा गुज़रता है हर रात गुज़रती है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
चाहत ये वतन की तो दिल से न निकलती है
अब खुश्बू-ए-मिट्टी से हर सांस महकती है
हम जाएँ कहीं लेकिन इसकी ही इबादत में
दिन मेरा गुज़रता है हर रात गुज़रती है
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)