वतन की आपबीती
अब कहाँ वोह प्यार,वो बातें प्यार की ,
अब तो मुझे सब खवाब सा लगता है।
गाये होंगे कभी किसी ने गीत प्यार के ,
अब तो यहाँ हर सु विरान बस्ता है।
होती थी कभी बहारें मेरी जिंदगी में ,
अब तो यहाँ खिजा का डेरा लगता है।
मेरेआसमां ,हवाएं औ चाँद -सितारे
कल थे खुशनुमा,आज दाग दिखता है।
होता था मेरा रूतबा कभी जहाँ में ,
अब मेरा किरदार बदनाम होता है ।
कभी पीता था मैं मुसर्रतों के जाम ,
अब मुझे सरश्के-गम पीना पड़ता है।
रफ्ता-रफ्ता मेरा ज़ख्म बढ़ रहा जैसे
मेरा हर क़दम मौत की ओर बढ़ता है।
मेरी आर्ज़ुओं और मेरे सपनों का महल ,
अब जो मकबरे में तब्दील होता जाता है।
“अनु “सुनाए अपने वतन की आपबीती,
सुनकर जिसे दिल नम सा हो जाता है।