वज्रमणि
लघुकथा शीर्षक -वज्र मणि
#बारह बरस पीछे घुरे के दिन बदलते कहावत #
पर आधारित-
सतना मध्यप्रदेश का जनपद जहाँ माँ मैहर विराजती है जिन्हें माँ शारदे भी कहते है साथ ही साथ यह जनपद शुष्क पहाड़ों से घिरा है जिसके कारण यहां सीमेंट उद्योगों कि बहुतायत है गर्मी के दिन में पूरा सतना शहर ऐसा जलता है जैसे जलती भट्टी शतना में भी कुछ आदिवासी जन जातियां निवास करती है ।
सतना से मैहर रोड पर मुख्य मार्ग से हटकर गांव है शिबली जहां कलचुरी जाती के आदिवासी लोंगो कि बहुलता है मेहनत मंजूरी करते अधिकतर परिवार अपना जीवन यापन करते है ।इसी गांव में पारस भी रहते है जो स्वभाव से बहुत सीधे और मिलन सार व्यक्ति थे गांव में या गांव के आस पास किसी के परिवार में मरनी करनी हो अवश्य पहुँच जाते और जो भी काम उन्हें कोई देता उसे बड़े प्यार से करते जिनके यहां पारस जाते उनमें बहुत से लोंगो को उनका सहयोग स्वगत योग्य लगता कुछ लोंगो को नागवार भी लगता कि बिन बुलाये मेहमान चला आया । पारस के साथ ऐसा बर्ताव करते अपमान एव तिरस्कार से परिपूर्ण होता लेकिन पारस किसी भी व्यवहार से बेफिक्र अपने स्वभाव के अनुसार अपने कार्य करते रहते ।गांव के ही बगल के गांव रहमतपुर में ठाकुर रुद्रप्रताप इलाके के बहुत बड़े जमींदार जितने बड़े व्यक्ति थे उतना ही बड़ा दिल था उनका वह मनुष्यो में ऊंच नीच बड़े छोटे के भेद भाव को नही मानते थे और जाती मजहब के आधार पर या धन संपत्ति के आधार पर किसी को बड़ा छोटा नही समझते सबको गले लगाते और सबका यथोचित सम्मान करते ।
पारस अक्सर ठाकुर रुद्रपताप सिंह के पास आता जाता और उनके घर के छोटे बड़े हर कार्य मे बढ़ चढ़ कर भागीदारी करता ठाकुर रुद्रपताप का परिवार पारस कि सेवाओ से बहुत प्रभावित रहता और हर सम्भव संम्मान सहयोग पारस के लिए करता । ठाकुर रुद्र प्रताप का बेटे अर्थतेंद्र सिंह को पारस जैसे छोटे आदिवासी का जमींदार ठाकुर परिवार से नजदीकियां एव सम्मान विल्कुल पसंद नही था वह पिता रुद्रपताप से अक्सर छोटे लोंगो को उनकी हद में रखने की सलाह देता रहता ठाकुर रुद्रपताप सिंह अनसुना अनदेखा कर देते या तो अपने बेटे को मानवता धर्म समझाते और कहते बेटे# समय कब किसे राजा रंक बना दे पता नही कहते है ना कि बारह बरस पीछे घुरे के दिन फिरते # अर्थतेंद्र कब किसकी तकदीर बदल जाए यह कोई नही जानता इसीलिये सदैव सर्वग्राही एव संतुलित आचरण करना चाहिए। समझाते समझाते अक्सर कहते बेटे अर्थतेंद्र वक्त समय काल किसी का नही होता यही बलवान और कमजोर राजा रंग अमीर गरीब बनाता है और कहते #बारह बरस पीछे घूरे के दिन भी फिरते# इसलिये समय के साथ समाज के हर बड़े छोटे को उचित आदर सम्मान देना मानवीय ही नही प्राणि धर्म है और ईश्वरीय विधान लेकिन अर्थतेंद्र को यही लगता कि ऊंच जाति रसूख के इंसान का पैदाईसी हक है छोटे एव कमजोर निर्धन पर शासन करना यही प्राकृतिक न्याय है ।
रुद्र प्रताप सिंह कि उम्र लगभग साठ पैंसठ वर्ष कि थी अतः वह अपनी जिम्मीदारियो को धीरे धीरे अपने एकलौते बेटे रुद्रपताप को हस्तांतरित करते जा रहे थे यह जानते हुए कि उनका बेटा क्रूर एव अमानवीय है और उनके बाद शायद ही जमींदारी बचा पाए फिर भी भगवान को हाजिर नाजिर मानकर बेटे को परंपरानुसार बेटे को जमीदारी के उत्तराधिकार एव जिम्मीदारियो को सौंपते जा रहे थे अर्थतेंद्र भी पिता रुद्रपताप के भय से अपने वास्तविक क्रूर अमानवीय चरित्र को दबाए रखता ।पारस का ठाकुर रूद्र प्रताप के परिवार में आना जाना एव हर छोटे बड़े कामो में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना बादस्तूर जारी रहा।
कहते है समय सबका अपने परीक्षा के दौर से गुजरता है ऐसा ही पारस के साथ हुआ एक दिन ठाकुर रुद्रपताप सिंह ने अपने कुल देवी कि मनौती में बृहद धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन कराया जिसमे पारस का आना लाजिमी था पूजन के बाद प्रसाद वितरण का कार्य चल ही रहा उसी समय पारस ने थाल में रखे प्रसाद को अन्य लोंगो तरह ही बाटने लगा जब पारस को प्रसाद बाटते अर्थतेंद्र ने देखा तो उसके क्रोध का ठिकाना ना रहा उसने आव न देखा ताव बहुत तेज लात से ठोकर मारा पारस को और अनाप शनाप गाली देते हुए बोला तुम्हे अपनी जाती और औकात का पता नही है जब देखो जहां देखो पिल पड़ते हो यह पिता जी बर्दास्त कर सकते है तुम्हे सर पर बैठा सकते है मैं नही पारस जमीन पर गिरा उसका सर फट गया और खून कि धारा बह निकली जब ठाकुर रुद्रपताप ने देखा की उनके पुत्र का वास्तविक स्वभाव अमानवीय क्ररता जो समाप्त कभी नही हो सकती सकते में आ गए उन्होंने पारस को डॉक्टर के पास भेजा और उचित चिकित्सा कराई लेकिन उनके मन मे बहुत ग्लानि बेटे के क्रूर स्वभाव को लेकर हुई ।जब पारस ठीक हो गया तब स्वंय ठाकुर रुद्रपताप सिंह पारस से मिलने गए और बोले पारस तुम इस बार विधायक का चुनाव लड़ जाओ पारस बोला मालिक खाने का तो ठिकाना नही चुनांव में बहुत पईसा लागत है और हम बकलोल के वोट के देई ठाकुर रुद्रपताप सिंह बोले कोई चिंता मत करो सब समय पर छोड़ दो
मध्यप्रदेश विधान सभा के आम चुनाव में ठाकुर रुद्र प्रताप सिंह ने पारस को निर्दल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतार दिया और चुनांव कि ब्युहरचना कि कमान गुप्त रूप से स्वंय सँभाली उन्होंने विधानसभा के हर गांव के सौ सौ परिवारो कि एक समर्पित कमेटी बना कर पारस के लिए गुप्त प्रचार कि आंधी बहा दी ।चुनांव सम्पन्न हुआ और पारस विजयी हुआ शेष सभी प्रत्याशियों कि जमानत जब्त हो गयी ।पारस विधायक बन गए एक दिन ठाकुर रुद्रपताप सिंह ने बेटे अर्थतेंद्र को बुलाकर कर कहा कि तुम्हारी दादी के नाम खैराती अस्पताल की मंजूरी मिले मुद्दत हो गयी पर अभी तक बना अब विधायक तुम्हरा राईयत पारस है जाओ पारस से मिलकर अस्पताल बनवाने का कार्य शुभारम्भ कराओ अर्थतेंद्र ने कहा जैसी बाबूजी की इच्छा ।अर्थतेंद्र विधायक पारस से मिलने गया भोपाल जव वहाँ पहुंचा तब पारस कही बाहर गए थे और विधायक जी के निवास पर आगंतुकों का हुजूम जमा था विधायक जी ने आगंतुकों के भोजन नाश्ते एव ठहरने का बहुत बेहतरीन व्यवस्था कर रखा था चूंकि वे स्वयं बहुत गरिबि एव जलालत कि जिंदगी के जद्दोजहद से विधायक तक पहुंचे थे उन्हें गरीबी एव आवश्यकता के अभाव के दर्द का दिली एहसास था।अर्थतेंद्र विधायक निवास पहुंच कर वैसे ही वहां विधायक का इंतजार कर रहे लोंगो से पूछा पारस कहां है इंतजार कर रहे लोंगो को बहुत आश्चर्य हुआ की यह कौन आ गया जो विधायक जी को नौकरों कि तरह सम्बोधित कर रहा है लोंगो ने अर्थतेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश कि विधायक जी को सम्मानजनक सम्बोधन से बुलाये मगर अर्थतेंद्र को अब भी पारस उनका आसामी ख़दूका ही लग रहा था और वह बैठे लोंगो को यही बताये जा रहा था कि पारस एक नीच आदिवासी है और मेरे घर के सामान्य नौकर जैसा जब बहुत समझने बोले जमींदार कुंवर जी आपने कहावत नही सुनी है ,#बारह बरस पीछे घुरे के दिन भी फिरते है# यही मानकर विदायक जी का सम्मान करें ।पर भी अर्थतेंद्र के व्यवहार में कोई परिवर्तन नही आया तब वहाँ विधायक जी के इंतजार में बैठे लोंगो का क्रोध बढ़ गया और उन सभी ने मिलकर अर्थतेंद्र कि पिटाई कर दी और पुलिस के हवाले कर दिया पुलिस ने अर्थतेंद्र को लॉकप में बंद कर दिया उधर पारस ठाकुर रुद्रपताप के मरहूम माँ सिद्धि ठाकुर के नाम स्वीकृति अस्पताल के लिए कोष एव मुहूर्त के लिए मुख्यमंत्री के स्वीकृति का पत्र लेकर सीधे ठाकुर रुद्रपताप सिंह जी के पास पहुचे और सरकारी दस्तावेजों को सौंपते हुए अर्थतेंद्र कि रिहायी कि बात बताई जिसके लिए उन्होंने पुलिस को स्वयं फोन किया था
और लौट गए जब अर्थतेंद्र लौटकर आया तब ठाकुर रुद्रपताप सिंह ने बेटे को समझाते हुए फिर कहा कि छोटा बड़ा ऊंच नीच कोई नही होता व्यक्ति के कर्म ही ऊंच नीच छोटे बड़े हो सकते है जिसके आधार पर व्यक्ति कि पहचान होती है एव सम्मान मिलता है वैसे समय वक्त काल बहुत बलवान होता है वह सबको समान अवसर देता है कहावत मशहूर है-
#बारह बरस पीछे घूरे के दिन फिरते है# तुमने तो पारस को घुरे से भी बदतर समझ रखा था अभी समय है पारस समय वक्त काल कि परख का हीरा है जिसकी चमक तुम्हे भी रोशन कर देगी।
नंदलाला मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।