वजूद पे उठते सवालों का जवाब ढूंढती हूँ,
वजूद पे उठते सवालों का जवाब ढूंढती हूँ,
दर्द भरे गलियारों में आज भी पनाह ढूंढती हूँ।
किस्से जो दफ़्न हो गए उनके निशाँ ढूंढती हूँ,
रेत को मुट्ठी से गिरा हवाओं में दिशा ढूंढती हूँ।
झूठ की राहों में सच की फ़िज़ा ढूंढती हूँ,
चेहरे में खुद के आज भी मुस्कुराहट भरा जहाँ ढूंढती हूँ।
डूबती उतरती साँसों में जिंदगी की वजह ढूंढती हूँ,
खंजर जैसे हाथों में लकीरों की जिरह ढूंढती हूँ।
नींदों में इक पल का सुकूँ बेपनाह ढूंढती हूँ,
इंतजार भरी किस्मत में बेबसी की चाह ढूंढती हूँ।
कुचली रूह में धड़कनों का खोया वो जज्बा ढूंढती हूँ,
आज भी खुद के वजूद में खुद को मैं तन्हा ढूंढती हूँ।