{{ वजह }}
बहुत दिन हो गए अकेली रातो में रोते रोते
आज मुस्कुराने की वजह ढूँढ़ कर लाते है,
तेरी यादों के दस्त में सिर्फ अंधेरा है
कुछ मोहब्बत के जुगनुओं को लाते है,
तेरा कोई न कोई पैगाम तो ज़रूर आया होगा
चलो डाकखाने से तेरा सहिफ़ा लाते है,
ज़िम्मेदारियों के संदूक में ख़्वाब सारे बंद हो गए
आज उन ख्वाबो को बाहर निकाल के पंख लगाते है,
जितना भी फासला रहा हो तेरे मेरे दरमियाँ
इन्हें मिटा के आज मोहब्बत को करीब लाते है,
सच झूठ का फैसला करे तो करे कौन
आज दोनो को सच्चाई के मैदान में लाते है,
शाख से तोड़े हुए फूल को यू ना कुचलो
उन फूलो को आज फूलदान में सजाते है,
बेज़ुबान हो गई हैं धड़कने भी अब इन्तेज़ार में
तेरा शहर दूर ही सही,आज मिल ही आते है,