वजह तुम हो
मैं तो चलु नजरों के मैख़ाने ले कर
पर वो तर जाए , घनश्याम वजह तुम हो ।
मैं तो देहरी के दीपक से होड़ कर खुद को जला लु ,
पर मेरी जिंदगी पकड़ले समर्पण की बेल ,
घनश्याम वजह तुम हो ।
मैं तो करू स्वपन लोक मे विचरण ,
पर हो जाए भक्ति ज्ञान का उदघोष दृष्टि पटल मे ,
घनश्याम वजह तुम हो ।
मैं तो आलाप मे प्रलाप मे खुद को भूल जाऊ ,
मेरा मुझमें ही छिपे ब्रह्म तत्त्व से हो परिचय ,
घनश्याम वजह तुम हो ।