वजन नहीं है
वजन नहीं है
© बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर
7 अक्टूबर, 2016
हमें अभी नया नया कवितायें लिखने का शौक लगा है. हमने अपने मित्र को अपनी एक ग़ज़ल सुनाई, तो वह बोले वैसे तोहमें नया नया कवितायें लिखने का शौक लगा, जैसे तैसे तुकबंदी कर एक गजल लिखी और हमने अपने एक परम मित्र उसे ग़ज़ल सुनाई, और कोई शायद सुनने को तैयार न होता, तो वे बोले कि गजल तो ठीक है लेकिन मतले यानी गजल के पहले शेर में वजन नहीं है. आपकी ग़ज़ल तो ठीक है लेकिन मतले के शेर में वजन नहीं है. लोग शायर के वजन के साथ साथ हर शेर में भी वजन ढूंढते रहते हैं. मैं सोचता हूँ कि शेर में वजन की क्या जरूरत, अगर वजन की जरूरत होती तो शायर शेर का नाम शेर न रखकर हाथी रख लेते. हाथी तो काफी वजनदार होता है. मुझे एक चुटकला याद आता है जिसके लेखक का नाम मुझे ज्ञात नहीं, चुटुकलों के लेखक अधिकतर अज्ञात ही होते हैं,जिसे बचपन में कभी सुना था, आप भी सुन लीजिये “एक बार एक कवि सम्मलेन चल रहा था जिसमें एक नौसिखिये कवि को काव्य पाठ करने को अचानक कह दिया, उन नए कवि को को तो कुछ आता ही नहीं था, उन्होंने कहा भी कि श्रीमान मुझे कुछ नहीं आता, लेकिन वरिष्ठ कविगण कहाँ मानने वाले उन्होंने कहा नहीं भाई एक शेर तो बनता है, तो मायूसी से नव कवि उठ कर खड़ा हुआ और बोला “मुम्बई दिल्ली से दिल्ली तक, दिल्ली से मुंबई तक” एक श्रोता बीच में चिल्लाया “गुरू शेर में वजन नहीं है”. यह सुनकर कवि जो हूट होने की कगार पर खड़ा था, बोला “बैठ जा भाई, बैठ जा, रफ़्तार नहीं दिख रही तुझे, हमेशा वजन मत देखा कर भाई, कभी कभी रफ़्तार भी देख लिया कर”. खैर अब हम पूरी कोशिश कर रहे हैं, शायरी या कविता जो भी कह लो उसमें रफ़्तार के साथ साथ पर्याप्त वजन भी हो.
बचपन में हम सरकंडे जैसे दुबले पतले थे, माँ कहती रहती थी कि दूध, दही, घी और माखन खाओ जिससे तुम्हारा वजन थोड़ा सा बढ़ जाये, बचपन में तो वजन बढ़ नहीं पाया लेकिन आजकल जैसे जैसे उम्र बढ़ रही है, वजन भी बढ़ रहा है. ज्यादातर लोगो के साथ ऐसा ही होता है. एक बार हमें सर्दी जुकाम हुआ, हम डॉक्टर साहिबा के पास गए, हमारी श्रीमती जी साथ में ही थीं. श्रीमती जी ने डॉक्टर साहिबा को ये भी बता दिया कि इनका वजन अचानक से 8-10 किलो कम हो गया है और वो भी एक हफ्ते में. डॉक्टर साहिबा ने खतरे को भांपते हुए तुरंत हमारा थाइराइड टेस्ट करवा दिया, पता चला कि हमें वजन कम करने वाला थाइराइड हो गया है. थाइराइड की बीमारी भी अजीब है जो वजन बढ़ाना चाहता है उसका कम और जो कम करना चाहता है उसका बढ़ा देती है, याने ज्यादातर उल्टे ही काम करती है. यह भी अधिकतर देखा गया है कि श्रीमती जी को वजन बढ़ाने वाला थाइराइड होता है और श्रीमान जी को वजन कम करने वाला. दोनों आपस में चाह कर भी इसे बदल नहीं सकते. हमने सोचा हो सकता इसी कारण से हमारी शायरी में वजन नहीं आ पा रहा था. खैर डॉक्टर साहिबा और ऊपर वाले की दुआओं से अब सब कुछ नियंत्रण में आ गया है, कम से कम कुछ लोग तो यह कहने लगे हैं कि आपकी शायरी में थोड़ा वजन आ गया है, यानी दमदार हो रही है. हमारा वजन कम होना भी रुक गया है. उन सभी मित्रों का शुक्रिया कि जिन्होंने कठिन समय में हमारा साथ दिया, जिन्होंने नहीं दिया उनका भी शुक्रिया. पुरानी कहावत है जो दे उसका भला जो न दे उसका भी भला.
हलकी चीजें आसानी से चल सकती हैं, दौड़ सकती हैं, उड़ सकतीं हैं. भारी चीजों को ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है. लेकिन साहब सरकारी कार्यालयों में तो उल्टा ही होता है, फाइल पर वजन न हो तो आगे चलना तो दूर, खिसकती भी नहीं. सभी तरह के आवेदन हवा में ही उड़ जाते हैं और रद्दी की टोकरी में विराजमान होकर अपनी सद्गति को प्राप्त होते हैं. ये अलग बात हैं कि सरकार आवेदनों को उड़ने से बचने के लिए पेपरवेट खरीदने पर भी बजट का कुछ हिस्सा खर्च करती है, लेकिन सरकारी लोग, कभी कभी उनका इस्तेमाल टेबल पर गोल-गोल घुमाकर फिरकी का आनंद लेते दिख जाते हैं.
एक और बात आजकल देखने में आती है कि नेताओं के भाषणों में एक आध बात पसंद आ जाती है तो खुसुर पुसुर होने लगती है कि नेताजी की इस बात में तो कुछ वजन है, इसी वजन के आधार पर कुछ वोटों का जुगाड़ हो जाता है और उन्हें चुनाव में जीत हासिल हो जाते है, हालांकि उनका वह थोड़ा सा वजन भी, ज्यादातर भाषण तक ही सीमित रह जाता है. चुनाव के बाद सारे नेता और उनके चमचे ही क्रमश: वजनदार होते चले जाते हैं. जनता क्रमश: और भी दुबली होती चली जाती है, फिर हवा में यहाँ से वहाँ रद्दी कागज़ की तरह उड़ती रहती है. आप को कुछ भी करवाना हो तो वजनदार होना या साथ में वजनदार की सिफारिश होना या वजनदार लिफाफा होना जरूरी है. यह वजन कुछ खास लोगों के पास ही होता है, बाकी तो राम ही राखे.
जब लोग अपने बेटे के लिए दुल्हन तलाशने निकलते हैं तो उन्हें दुल्हन वजन में कम और दहेज़ वजन में ज्यादा चाहिए होता है. शादी होकर नई बहू जब घर में आती है, तो घर की वजनदार महिलायें दहेज़ में मिले या उपहार में आये गह्नों को हाथ में उछाल उछाल कर वजन का अनुमान लगाने और यह पता लगाने का प्रयास करते हुए देखी जा सकती हैं कि वजनदार रिश्तेदारों, मित्रों और शुभचिन्तकों ने अपने वजन के हिसाब से गहने दिए हैं कि नहीं. उपरोक्तानुसार वजन के हिसाब से ही फिर बहू को ससुराल में इज्जत प्रदान की जाती है. जो दुलहन वजनी दहेज़ के साथ ससुराल नहीं आती कभी कभी समय से पूर्व ही भगवान को प्यारी हो जाती हैं.
अमीरों और गरीबों के वजन के शौक भी अलग अलग किस्म के होते हैं.यहाँ पर मैं शरीर के वजन की बात कर रहा हूँ. जिनके शरीर का वजन ज्यादा होता है उन्हें हर कोई कुतूहल की दृष्टि से देखता है, रिक्शा टैक्सी बसों और खासकर कहीं लाइन में लगे भारी आदमी को मुसीबत का सामना करना पड़ता है, यदि वो महिला हुई तो उसकी परेशानी और विकराल रूप धारण कर लेती है. जहाँ अमीर अपना वजन कम करने के लिए महँगे-मंहगे जिम या घर पर विशिष्ट किस्म के उपकरणों का इस्तेमाल कर अपना वजन कम करने का प्रयास करते रहते हैं,कुछ अति उत्साही लोग आजकल वजन कम करने के लिए ऑपरेशन भी करवाने लगे हैं.उनका वजन कम होता हो या न होता हो, उनका धन अवश्य कम हो जाता है. वहीँ गरीब लोग पेट में दो रोटी का वजन डालने के लिए धूप में मेहनत कर दो रोटी के वजन के बराबर पसीना निकाल देता है और साथ में गाली खाता है सो अलग. अंतत: अमीर और गरीब दोनों ही अपने अपने प्रयासों में असफल होते है. न अमीर का वजन कम होता है न गरीब का बढ़ता है. प्रभु की लीला अपरम्पार, पाया नहीं किसी ने पार.