वचन भंग
************वचन भंग (लघु कथा)********************
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बिरजू एक खुशहाल किसान था,जो कि अपनी जीवनसंगिनी संग खुशहाल जीवन जी रहा था। लेकिन दोनों की खुशहाल जिंदगी में कमी औलाद की थी।शादी के दस वर्ष बाद भी उन्हें सन्तान का सुख नही मिला था।
अचानक एक दिन बिरजू की पत्नी सावित्री ने उसे खुशखबरी सुनाई कि भगवान ने उनकी फरियाद सुन ली है और वह अब पिताजी बनने वाले हैं।यह खबर सुनकर बिरजू फूला न समाया और इस खुशी के उपलक्ष्य में उसने गरीबों को सात्विक भोजन करवाया और दान स्वरूप कंबल भेंट किए।
आखिर वो दिन भी आ गया,जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था।बिरजू को पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई थी और उसकी ऑंखों में खुशी के आँसू थे।पत्नी सावित्री भी बहुत खुश थी,उसने जो अपने पति की इच्छापूर्ति करते हुए घर,धन संपत्ति,कुल का वंश पैदा कर दिया था।लेकिन प्रसव के दौरान ज्यादा रक्त स्राव होने के कारण वह काफी शिथिल थी और वह बीमार रहने लगी थी।
एक रात उसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी और उसकी ऑंखों में सफेदी आ गई थी और पैरों में सूजन।उसने पति बिरजू का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए नम आँखों से सदा के लिए विदाई लेते हुए कहा कि उसका अब अंतिम समय आ गया है और वह उससे वचन लेना चाहती है कि वह दूसरी शादी कभी नही करेगा और दोनो के प्यार की निशानी बेटे की बहुत ही अच्छे ढंग से परवरिश करते हुए उसे जीवन मे कभी भी माँ की कमी महसूस नही होने देगा।बिरजू से यह वचन लेकर सावित्री ने सदा के लिए आँखें मूंदते हुए गहरी चिरनिद्रा में लीन हो गई।बिरजू का रो रो कर बुरा हाल था।
पत्नी सावित्री की मृत्यु के कुछ महीनों बाद अपनी पद,प्रतिष्ठा, कुल,लाज और पुर्वजों के हाथों मजबूर हो कर वचन भंग करते हुए उसने दूसरी शादी कर ली थी और सावित्री और उसके बेटे के लिए सौतेली माँ का बंदोबस्त कर लिया था,जिसने बाद में खुद की संतान होने पर बिरजू और उसके बेटे का जीवन नर्क बना दिया था और अब बिरजू को सावित्री से किए वचन भंग की सजा मिल रही थी और वह अकेले में वह प्रयाश्चित करते हुए बहुत रोता था।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)