“वचन देती हूँ”
कुछ इस तरह रहूंगी प्रियतम तुम्हारे संग,
पवित्र इस तरह प्रयाग में,बसी गंगा की तरह ।
तुम्हारे जीवन को शीतल करती रहूंगी,
अमृत जल की तरह ।
शिव के मस्तक पर बसे चांद की तरह,
संघर्षों में साथ रहूंगी लक्ष्मीबाई की ढाल की तरह।
कुछ इस तरह रहूंगी तुम्हारे संग,
आत्मा में बसती रहूंगी सांस की तरह।
कुछ इस तरह कविताओं में तुम्हे रचूंगी,
कभी रस कभी छंद कभी अलंकार बनकर।
कुछ इस तरह रचूंगी प्रेम को तुम्हारे,
रामचरितमानस की सीता सी रहूंगी।
कुछ इस तरह रहूंगी तुम्हारे संग,
श्रीमद्भ्भगवत की गीता सी।
कुछ इस तरह प्रेम निभाऊंगी,
हरि के चरणों में लक्ष्मी की तरह।
तुम्हारे प्रेम की माला जपूंगी,
एक एक पल उर्मिला के प्रेम की तरह।
कुछ इस तरह रक्षा कवच बनूंगी,
रुक्मणि के प्रेम की तरह।
कुछ इस तरह रहूंगी तुम्हारे संग,
प्रेम से भरी राधा की तरह ।
कुछ इस तरह दुख के विष पिऊंगी,
संग तेरे रहूंगी मीरा की तरह ।
कुछ इस तरह रहूंगी सम्मान में तुम्हारे,
अपमान ना सहूँगी सती की तरह ।
कुछ इस तरह निभाऊंगी प्रेम को तुम्हारे,
करूंगी इंतजार शकुंतला की तरह।
कुछ इस तरह भक्ति में चाहूंगी तुम्हें,
पूजा में वरदान सावित्री की तरह ।
कुछ इस तरह रहूंगी प्रियतम ,
हरदम तुम्हारे संग हरदम तुम्हारे संग ।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज