वगिया है पुरखों की याद🙏
वगिया है पुरखों की याद🙏
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नव किसलय का आनन
सुगंधित नव पुष्प आलय
सींची बगिया पुरखों की याद
कलियाँ विकसित खिल सरस
सुगंध बिखराने को पंखुड़ियां
खुली समय पर पुष्प मधुर मधु
भ्रमर भ्रमण प्रेम सद्भाव बरसाने
माली बिन हुई सूनी फतझड़ सी
वगिया मुरझा गईआदार सत्कार
सुंगंध खुशबु पहचान बनाने को
गीता ज्ञान संस्कार लिया पुरखों
पथिक स्मृतियों की यादों सद्भाव
नमन समर्पित करते सूनी वगिया
माली मालिन मालकियत छोड़
काल गति समा गए दोनो पर
आया नहीं नूतन सुमन इस कुंज
गली बदल कहीं और चल बसे
सूनी कुंज विकसित डाली सूख
जलहीन मुरझाए नव यौवन की
विकसित कुसुम कलियां घमण्ड
गर्व दम्भ आहत हो फूलता फूल
झरझरा बगिया व्यथा-कथा भरी
सूनी पतझड़ विरान सी वगिया
भूलकर भी मूल्य नहीं भुलाना है
क्योंकि वगिया है पुरखों की याद ॥
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण