वक्त
🎻 वक़्त 🎻
वक्त रुकता नहीं
वक्त थमता नहीं,,,,
लम्हा लम्हा गुज़र कर
हर पल ले आता है
नई सौगातें,,,
कुछ खट्टी कुछ मीठी,
बदलती रहती है तारीख
गुज़रता रहता है वक्त,,,,,
आसमां के दामन पर
सूर्ख़ सूरज की रोज़ दस्तक
सांझ ढलते समा जाना
समन्दर की गहराइयों में
वक्त के साथ यूं ही सूरज
रोज़ निकलता ढलता है,,,
सिलवटें पेशानी की
लबों की मुस्कुराहट
वक्त की नब्ज ही तो है,,,
जो रफ़्ता रफ़्ता धड़कती और
कभी दे जाती ज़िंदगी
कभी ले जाती जान,,,,
कभी बंजर सेहरां
कभी शबनम की नमी,
चलते रहना ही फितरत तेरी
रुक गया वो वक्त नहीं,,,,
आज थामकर तेरा हाथ
महसूस किया तुझको…
अब तू चलता चल
चाहे जितना बदल,,,
तेरे साथ साथ चलना है,,
हँसते मुस्कुराते
अब.वक्त के साथ खुद को बदलना है,,,,
नम्रता सरन “सोना”