*वक्त है बेटी सम्भल जा अभी भी *
*वक्त है बेटी सम्भल जा अभी भी *
दिल का महकमा कुछ कह रहा है ।
नहीं पता ये लड़कियां जींस टॉप पर क्यों मरती है ।
पर लगती सूट सलवार में लड़की असल में लड़की,
जिसे मेरी नजरें झुककर सलाम करती हैं।
जीन्स टॉप तो होता है आँखों का घर्षण
सूट सलवार में ही होता , हमारी सभ्यता का दर्शन
गज की गुंधवीं चोटी की रौनक , स्ट्रेट बालों में कहाँ होती है ।
जो करती इस तरह का पहनावा , चर्चा हर अच्छे किस्से में होती है।
आँचल तेरा नहीं बहन , वासना का आधार ।
ढक दुपट्टे से इसे , ले अपना रूप सँवार ।
कुछ पंक्तियों के माध्यम से मैंने , अपने रखें हैं विचार ।
करना बहनों मेरे तर्क पर तुम , दिल से सोच विचार ।
आईने के सामने जाकर , देख तो मेरी पगली बहना ।
फिर लगे पता तुझे , गलत है या सही मेरा कहना ।
अगर आये पसन्द तुझे , ये बताया सोभर रूप
अपना और पहुंचा आगे भी , मेरे इन शब्दों की गूँज
रहने वाले है हरियाणा के , करते सलाम हम पंजाब को भी
यही पहनावा बने पूरे भारत का , यही है मेरे ख्वाब भी
सूट सलवार का जीन्स क्या करे मुकाबला
बेशक आजकल बेटी का इस ओर चल पड़ा काफिला
इस विदेशी नाच में नाच रही बेटी
होता अच्छा अगर संस्कृति न खोती
एक आवाज मेरी माँ को भी है , अपनी बेटियों को समझाएं
खुद भी करे शुरू लेना दुप्पटा , बेटियों को भी आँचल ढकना सिखाएं।
रोब तेरी सुंदरता की रौनक का , सूट सलवार में भी होगा ।
करके देख शुरू ये पहनावा , गलत न बिलकुल ये कहना होगा ।
घूंघट का लेने का नहीं है मेरा कहना ,
पर जो पहचान थी भारत की , मत इसे तुम हर हाल में खोना
अभी भी वक्त है सम्भल जा बेटी , बात देश की आन की
बन जा मूरत सादगी की बहना , दिखा फिर से पहचान हिंदुस्तान की ।
लिखे है काफी कड़वे सच , पर लड़की के बढ़ते कदम पर न दाग बने
करे तरक्की बेटी जी भर के , बड़ा उसका नाम और बड़े उसके भाग बने
उस मजबूर बाप को भी देखा मैंने , जो बेब्स है लड़की को कुछ कहने में
दम घुटता है उस बाप का , ये नंगापन बेटी का सहने में
हो अगर गलत वास्तव में तो , दिल से उतार देना ।
अगर लगे दम इस कड़वे सच में , कुछ बहनों को भी ये विचार देना
मेरी सोच लड़कियों को जीन्स टॉप रोकने की नहीं बल्कि उन्हें सूट सलवार और बालों की गुत बनाकर जो उनमें सभ्य सुंदरता आती है उसके बारे में केवल महसूस कराना है । इसे पढ़ने के बाद भी आप बेशक जीन्स ही पहने । क्योंकि वो ही अपनाएगी जो इस सन्देश को गहरायी से समझ पायेगी।
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© कृष्ण मलिक 21.06.2016 and revised on 25.08.2016