वक्त स्वतंत्र परिंदा
वक्त है स्वतंत्र परिंदा
गुलाम मोहताज नहीं
जो जाए वक्त निकल
आता कभी हाथ नहीं
तीव्रता से गुजर जाता
कभी ठहरता ही नहीं
जो नहीं समझे कीमत
हो कभी आबाद नहीं
वक्त बड़ा बेशकिमती
है अनमोल,मोल नहीं
बेवक्त होता है इंसान
वक्त बेवक्त होता नहीं
दरिया पानी सा बहता
जो कभी रुकता नहीं
वक्त तो होता सब का
कोई पहचाने ही नहीं
एक हवा का झौंका है
पल भर ठहरता नही
वक्तानुसार जो है चले
हो कभी नाकाम नहीं
वक्त तो होता है अदृश्य
देता कभी दिखाई नहीं
वक्त बेरंग रंगहीन सा
रंगों का मोहताज नहीं
वक जो समयचक्र है
जो कभी बेवक्त नहीं
सदा आगे रहे बढता
मगर लौटता ही नहीं
जो वक्त नहीं संभाले
वक्त संभालता नहीं
वक्त समझ के चलो
वक्त छोड़ता ही नहीं
वक एक अनुशासन
प्रकृति है थमती नहीं
वक्त है स्वतंत्र परिंदा
गुलाम मोहताज नहीं
सुखविंद्र सिंह मनसीरत