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29 Mar 2020 · 2 min read

वक्त से एक मुलाकात

मैंने वक्त से कहा
तु ये बता
तु कितना बदल गया
वक्त बोला, वो वक्त कुछ और था
जो निकल गया
तेरी आंखों में चकाचौंध की दुनिया छायी है
वक्त तु देखता है
और मेरे लिए घड़ी बनायी है
मैं तो कभी बदलता ही नहीं
एक तु है जो चलता ही नहीं
वाह रे इंसान
हर घड़ी बदल दे जो अपना ईमान
मुझ पर हमेशा ये आरोप है
कि वक्त बुरा है
कम से कम तु अपनी ही बता दे
तु कितना खरा है
हर बार मुझे ही करता है जलील
अपनी खातिर कितनी रखेगा मेरे सामने दलील
अगर तु थोड़ा भी मुझे समझ पाता
तो कभी भी तेरा बुरा वक्त नहीं आता
मैं तो चलता हूं लगातार
आठों पहर एक समान मेरे यार
तु रुक जाये तो मेरा क्या है दोष
झांक अपनी गिरेबान में
तु भी चला कर मेरी तरह
स्वयं ही बन जायेगा तु निर्दोष
मेरे साथ चल या चल मुझसे आगे
मैं थमता नहीं
मेरे पैर सदा ही भागे
यदि जीतना है तो हरा मुझको
फिर कहना मैं जो न दूं तुझको
तेरा इल्जाम हंस के सह लूंगा
तुझसे न कहूंगा
अपनी आह तक किसी और से कह लूंगा
कभी मेरी आह न लेना जरा सी
नहीं तो जिंदगी में
छा जायेगी तेरी उदासी
मैं तेरा साथी हूं मेरे साथ तो चल
तुझे अपना मानूं
कुछ मेरे रुप में ढल
ये दुनिया बदलती है तो मुझे भी
अपने साथ बदल
दुनिया बुला रही है
मत सोच
मुझसे भी और आगे निकल

पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख से ओतप्रोत
आप सबको सूचित हो
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर,छ.ग.

Language: Hindi
5 Likes · 5 Comments · 364 Views
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