#वक्त सबका आता है#
जो बीत गया ,सो बीत गया
वो क्षण न वापस आयेंगे
जो मन से नीचे उतर गए
वो मन में न बस पाएंगे
कल हमें जरूरत थी उनकी
वो दूर से हाल पूछते थे
अपने टाइम पर हर कोई
गुण से मीठा बन जाते हैं
अब हम भी वो नादान रहे
जो मीठी बातों में आयेंगे
जैसे के लिए हम भी
तैसा बनकर दिखलाएंगे
फिर सोचती हूं कि अगर मैं भी दूसरों के जैसी बन जाऊगीं तो उनमें और मुझमें फर्क ही क्या रह जाएगा।
अपने बच्चों को मैं क्या सिखाऊंगी।
फिर सोचूं मैं क्यों बदलूं
फिर उनमें मुझमें फर्क ही क्या
जिनको मेरी परवाह नहीं
उनके लिए खुद को क्यूं बदलूं
जो संस्कारों को भूल गया
वो आगे पीढ़ी को क्या दे पाएगा
मैं जैसी हूं मैं अच्छी हूं
मुझको उनके जैसा क्यों बनना
स्वरचित रचना
मन के विचार
रूबी चेतन शुक्ला
अलीगंज
लखनऊ