वक्त मिले तो पढ़ लेना
वक्त मिले तो पढ़ लेना
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एक गुजारिश आप सबसे है
शायद आपके लिए मुश्किल भी है,
फिर भी अपनी बात रखता हूँ
आप सबसे कहता हूँ
समय निकालने के लिए नहीं कहता हूँ।
गलती से भी यदि कहीं थोड़ा सा
वक्त मिले तो पढ़ लेना
अपने जीवन के पुराने पन्नों को
और विचार करना उन बीते हुए लम्हों में
अपनी कारगुजारियों के बारे में।
क्या सही, क्या ग़लत था?
क्या कठिन, क्या सरल था?
क्या कर्तव्य, क्या अधिकार था?
क्या जरुरी, क्या बेकार था?
क्या जिम्मेदारी थी और क्या जरुरी था?
क्या गैर जरूरी और क्या मजबूरी थी?
न किसी से कुछ कहना है,
न किसी को कुछ बताना है
न सफाई देना, न मजबूरी बताना है
न संकोच करना है, न शर्मिंदा होना है
सब कुछ खुद ही जानकर रह जाना है
अपने आप से ही सवाल जवाब करना है।
बस! वक्त मिले तो पढ़ लेना भर है
न पढ़ने के लिए वक्त नहीं मिला का
बहाना भी तो भरपूर है,
पर इसमें भला आपका कसूर क्या है?
सारा का सारा कसूर वक्त का है।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित