वक्त ने इंसान बदल लिया है।
जब भूखे मरते थे,
गरीब और लाचार थे,
चाची , भौजी कह कर,
उनकी चौखट में हाथ फैलाते,
कहते बासी बचा हुआ रोटी हो तो दे दो,
पानी में डुबो कर खा लेंगे,
कोई घर का काम हो तो बता दो,
अपना समझ कर कर देंगे,
चूनी चोकर रखा हो,
उसी से ही काम चल जाएगा,
गरीबी ऐसी गुजरती थी,
सुविधाओं को कौन सोचता था ,
कलम और शिक्षा तो दूर थी,
सिर पर पत्थर रख कर माँ ढ़ोती थी,
पुल निर्माण में मजदूरी कर दी ,
हाथों की तखती और चाक रख जाती थी,
धूल में लिख कर भी सीखते थे,
धूप में बोझा ढ़ो कर पढ़ाई करते थे,
ना रात छोटी होती,
ना काष्टों का दिन ढ़लता था,
सब्र का बाँध बचा कर,
पद नौकरी पाई तब,
गुजरते उन रास्तो से पुल से ,
फिर भी आँखें भर जाती है,
यादें नहीं जाती है,
सुकून नहीं इस सुख में उतना,
उस गरीबों की बस्ती में,
अपनी यादों को मुझ पर हँसते देखा,
रास्ते कितने बदल गये,
अपनी जिंदगी किसी और में दिखाई दे रही,
दर्द, लाचारी, मजबूरी और भूख पड़ोस में चली गयी,
समझ नहीं पा रहा हालातो को,
जिंदगी बदल गई है या,
वक्त ने इंसान बदल लिया है।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।