वक्त का परिंदा
वक़्त पर अपना कृत्य करता,
चक्षुओं में अपना सपना लिये,
वक्त के साहचर्य चलता वह ,
मंजिल की ओर अग्रसर रहता,
वही वक्त का परिंदा कहलाता।
उनमुक्त शून्य में प्लवता पक्षी ,
वह भी होता वक्त का परिंदा ,
वक्त के साहचर्य ही वह ,
करता आहार का आयोजन ,
रहता सुख – चैन के साहचर्य।
उनमुक्त पक्षी से उत्तेजित होकर ,
आलसपान, अहंकार, तृष्ण कूल ,
हमें भी इन्हीं के ही तुल्य ,
सुख – चैन से नसैनी होगा ,
वक्त का परिंदा कहलाना होगा
वक्त का पाबंदी होता,
अपना प्रतिज्ञा सकल करता,
न्याय का साहचर्य निभाता,
वक्त से करता हर कृत्य ,
वही वक्त का परिंदा होता।
✍️✍️✍️उत्सव कुमार आर्या