*~* वक्त़ गया हे राम *~*
वक्त़ बहुत था पास मेरे, पर वक्त़ रहे ना जाग सका
क्या स्वाद कामयाबी का है, ये स्वाद कभी मैं नहीं चखा
(1) कल नहीं जागा गम है बहुत, लेकिन अब मुझे जागना है
कठिन परिस्थिति जो भी रहे, मुझको अब नहीं भागना है
चट्टानों सी बड़ी समस्याएं भी, बन जाए मेरी सखा
वक्त़ बहुत था………..
(2) है पढ़ाव अंतिम मेरा, मुझे सब भरपाई करनी है
धूमिल और काली किस्मत में, अभी रोशनी भरनी है
बुरा वक्त़ गंभीर भी हो सकता है, ये कोई कहां लखा
वक्त़ बहुत था……….
लेखक:- खैमसिंह सैनी
मो. न. 6375334416