वक़्त
वक्त साथ है
अभिव्यक्त नहीं होता कभी
योंही तुम साथ रहो
पूर्ववत
लगता है तुम हो
तुम ही हो
पर साथ क्यों नहीं होते
तुम
कभी कभी
साथ थे
पहले पहल
यकीनन्
वो माझी व्यर्थ नहीं
जो कभी संग था मेरे
आज भी है वक्त
अकिंचित डगर पर तुम कभी
आओ तो सही
एक बार तुम
किंतु तुम
केवल तुम
जब साथ में भी तुम्हारें
तुम ही हो
मनोज शर्मा