वक़्त
तारीखें गुजरेगी
साल गुजर जायेंगे
रातें यूं ही बीतेंगी और
दिन यूं ही ढल जायेंगे
कोई कितना रोके इनको
ये कहां रूक पायेंगे
अपनी धुन के ये हैं पक्के
ये तो चलते जायेंगे
न जाने कितने जन्में गए यहां और
कितने ही मर जायेंगे
कितने ही गुमनाम और
किये याद कितने ही जायेंगे
जिनके हक में जितना है
वे उतना ही पायेंगे
लाख कोशिशें करके भी
मलते हाथ वो रह जायेंगे
खुशियों के रेले कभी और
कभी तूफां गम के आयेंगे
कामयाब कितने ही होगें ,
कितने तो टूट जायेंगे
जिनको आज देखा है
वो कल नजर न आयेंगे
‘वक्त’ की ताबीर पर
नये चेहरे उभर आयेंगे…