वक़्त के घाव:-
पीड़ित के डाला मन को मेरे तुमने अंजाने में।
अब जार जार रोता है मन बेचारा यह वीराने में।
तेरी खता नहीं ए वक़्त तूने तो फूल वारे।
किन्तु यह मेरी किस्मत बन गए वो शूल सारे।
फूलों से मिले हुए घावों से हम रोते रहे बेचारे ।
फूलों को क्या पड़ी जो वो खुशबू हम पर वारें।
हैं व्यस्त फूल अब तो चमन को सजाने में।
अपने लिए तो खुशियां भी आईं थीं गम ही बनकर।
दे न सके उजाले दिन रात हम तो जलकर।
सोचा विभा किरण ही आए प्रभात बनकर।
आशाएं और मन में प्रा विश्वास लेकर।
सूरज की किरणे लग गई कलियां खिलाने में।
फिर भी उठाई कश्ती आशा चिराग लेकर।
फिर से नया कर गुजरने का जज्बा अनुराग लेकर।
तूफान फिर से आया बीड़ा बिराग लेकर।
क्षण में चला गया वो मुझे जख्म घाव देकर।
रेखा को चैन आए खुद को मिटाने में।