वक़्त और नसीब
ल
होता होगा तू खुश,
मेरे इस हालात पर,
उड़ाता होगा मेरा उपहास,
मेरा नसीब देखकर,
आती होगी तुमको हंसी,
मेरी इस बर्बादी पर।
क्योंकि तुमको मिल गया है,
एक अच्छा साथी,
बिना मेहनत और,
कुछ खोये बिना,
शायद तेरे घमण्ड की,
नहीं होगी कोई सीमा,
मुझसे मेरी खुशियों की,
यह विदाई देखकर।
और शर्म तो चेहरे पर,
बिल्कुल ही नहीं होगी,
क्योंकि मैं तेरी इस आदत को,
देख चुका हूँ उस वक़्त,
जब मैंने बहाया था अपना खूं ,
तुम्हारा साथ और प्यार पाने के लिए,
तुमको अपने मन की,
पवित्रता दिखलाने के लिए।
मैं देख चुका हूँ उस वक़्त,
तेरे मन में मेरे लिए,
नफरत और बेशर्मी को,
लेकिन क्या तुमको विश्वास है,
इस वक़्त और नसीब पर,
जो बदल जाता है,
कभी भी किसी भी समय।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)