वकत् नही
हर खुशी है लोगो के दामन में
पर एक हसी के लिये वकत् नही ….
दिन रात दौडती दुनिया में ,
ज़िन्दगी के लिये ही वकत् नही …
सारे रिश्ते तो हम मार ही चुके,
अब उनको दफनाने का भी वकत् नही ..
नाम सारे है ड्यरी मे ,
पर अब दोस्ती के लिये वकत् नही …
आँसू से हैं आँखो में ,
पर रोने के लिये वकत् नही …
दौड पड़े है बेशुध होकर ,
अब पीछे मुडने का वकत् नही …
कौन अपना कौन पराया ,
अब सोचने के लिये वकत् नही ..
हॅस रहा है या रो रहा है तू ,
अब यह देखने का भी वकत् नही …
दौडने लगा हूँ पैसो के पीछे,
अब अपनी खुसी के लिये वकत् नही …
पराये एहसानो की कद्र क्या करे ,
जब अपने लिये ही वकत् नही …
इक तू ही बता ज़िन्दगी ,
क्यूँ हर पल मरने वाले को,
ज़िन्दगी को जीने का ही
वकत् नही ….|||वकत् नही|||
mohit