“वंशस्थ छंद”
“वंशस्थ छंद”
कुटेव का मोह जभी बिदा करें
बिमार का जोड़ अभी जुदा करें
बहार छाए हर मोड़ आप के
चढ़े बुखारा तिन तोड़ तो करें।।
सहाय कैसे भल आप को मिले
उपाय कोई कब माप को मिले
नशा पुराना मित्र मान लीजिए
सुगंध कैसे इत्र भाप को मिले।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी