लड़ाई
मैंने देखा है अक्सर
लड़ते हुए
उनको,तुमको और खुद को
कभी जाति को लेकर,
कभी धर्म को लेकर,
कभी मंदिर को लेकर,
कभी मस्ज़िद को लेकर,
क्यों नही प्यार और,
भाईचारा को लेकर
हम झगड़ा करता हैं हमेशा
एक गलत परवरिश को लेकर।
क्या कभी हम लड़ सकते हैं
देश की मिट्टी और
इंसानियत को लेकर,
हाँ मैं लड़ सकता हूँ
जरूर लड़ सकता हूँ
जान जाऊँगा हक़ीक़त,
जिस दिन,
छल के पर्दे के पीछे बैठे लोगो की,
उस दिन,
ये “पागल” भी लड़ सकता है,
‘वतन’और ‘हम वतन’ के लिए।
——राहुल प्रकाश पाठक “पागल”