लड़की और समाज
सुनो!
क्या कर रही हो?
इधर आओ खाना देने पिता जी को जाना हैं।अंदर से चीरती हुई आवाज आ रही थी ।
माँ आ रही हू!
बाहर खेलते हुए किरन ने आवाज अपनी माँ को दी।
किरन बारह साल की बच्ची हैं जो कि अपने घर में तीन भाई बहनों में सबसे छोटी थी।लेकिन घर के हालात ठीक नही थे।
किरन के पिता किसान थे और माँ गृहणी थी जो घर के काम काज में व्यस्त रहते थी।
घर के काम काज में माँ किरन को लगाये रहती थी।और किरन के दोनों भाई पिता के साथ खेती में हाथ बटाते रहते थे।
किरन और उसके भाई पास के ही एक प्राथमिक शाला में पढ़ते थे।दोनो भाई पाठशाला जाते थे,लेकिन किरन की माँ किरन को अक्सर रोक लेती थी।ये समाज की मानसिकता जिसमे लड़कियों को स्कूल जाने से रोकता रहता हैं, हमेसा मन में भय का भाव रहता हैं।वह अपने माँ से हमेशा जिद्द करती रहती स्कूल जाने के लिए।भाई जब स्कूल से आते तो वह उनकी किताबो को सुनती और उन्हें सुनती मन में हमेशा सीखने और पढ़ने की ललक रहती।किरन के भाई एक दिन किरन को स्कूल ले जाते हैं, वो कक्षा में बैठे हुए थे।पास में किरन भी बैठी हुई थी।स्कूल के एक अध्यापक जब कक्षा में आते हैं तो जब वह किरन को देखते हैं तो पूछते है किसके साथ हैं ये!सर मेरे साथ ऐसा कह कर किरन का भाई ने उन्हें बताया!स्कूल के अध्यापक किरन के भाई को अपने पिता जी को स्कूल आने के लिए कहते हैं!घर पर सब किस्सा अपने पिता को किरन का भाई बताता हैं!किरन का पिता जिसका नाम हरिया था,वह किरन का भाई जिसका नाम हरीश था!उसे खूब डाँटता हैं!अगले दिन स्कूल जाता हैं।
स्कूल पहुच कर वह अध्यापक से बात करता हैं!अध्यापक किरन का नाम स्कूल में लिखवाने के लिए कहता हैं, कि किरन बहुत ही होनहार लड़की हैं उसका नाम लिखवा दे,जिससे वह पढ़ लिख कर एक अच्छी नागरिक बन सके और अपने घर परिवार का नाम रोशन कर सके!हरिया अध्यापक को कहता हैं की किरन पढ़ लिखकर क्या करेगी,आखिर में उसकी शादी हो जानी हैं, वह पढ़ लिखकर क्या करेगी?
ऐसा कहकर वह किरन को ले जाने लगता हैं।
अध्यापक हरिया को खूब समझाता हैं, और उसे पढ़ने के लिए कहता हैं!अंत में हरिया किरन का दाखिला करवा देता हैं स्कूल में और वह भी अपने भाइयो के साथ स्कूल आने लगती हैं।
किरन अब प्रतिदिन स्कूल आने लगती हैं, लेकिन कभी कभी उसके घर के उसको रोक लेते।इस वजह से उसे बहुत परेशानी होती और वह बाकी बच्चों से पीछे हो जाती।।किरन एक हाशियार लड़की होती हैं, उसके कक्षा की बाकी लडकिया उसे परेसान करने लगी थी।
किरन स्वाभाव से शर्मीली होने के कारन न अपने घर पर ना ही अधयापक से कुछ कह पा रही थी
अपने भाइयो से भी कुछ ना कहा।लेकिन धीरे धीरे सब सामान्य हो गया वह पढ़ती रही।जब थोड़ी बड़ी हुई और वह गांव में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद गाँव से बाहर जाना था,उसके पिता ने उसकी शादी कंही करने की कोशिश प्रारम्भ कर दी।वही किरन ने विद्रोह कर दिया कि उसे आगे पढ़ना हैं, अव किरन के भाई उसका समर्थन में थे,और वो भी आगे पढ़ने के लिए उसे बाहर ले जाना चाहते थे!समाज के लोग और गाँव के लोग इसके विरोध में हो गए !सब अपने अपने तरीके से बाते बना रहे रहे थे!वह सोच रहे थे कि कंही अकेले लड़की कैसे बहार रहेगी!लेकिन किरन ने हिम्मत नही हारी ना ही उसके भाइयो ने !अंत में उसके भाइयो ने अपनी माँ को भी अपने समर्थन में ले लिया!अब माँ भी किरन को पढ़ने के लिए भेजना चाहती थी!लेकिन परेशानी इस बात की थी हरिया जो की किरन के पिता एक किसान थे!गरीब थे!पैसे कंहा से आते!वही समस्या लेकिन मरता क्या ना करता!
किरन अपनी जिद्द में थी!अंत में किरन का दाखिला शहर में करवा देते है!किरन अपने पढाई में मग्न थी और वह ध्यान,लग्न से पढाई करते हुए एक कलेक्टर बन जाती हैं और वह अपने भाई माँ पिता का नाम रोशन करती हैं।
और समाज की आँखे खोलती हैं कि लड़कियों पर भरोसा किया जाए लड़कियां कभी गलत नही होती नही होती हैं! वो चूल्हा चौका के लिए पैदा नही हुई हैं!उन्हें बराबर मौका दिया जाए तो वो समाज परिवार देश सबका नाम रोशन करती हैं।
~आकिब जावेद