लड़कपन मे प्रथम दृष्टया
पड़ोस की छत
पर खड़ी दिखी थी
तुम,
इससे पहले कभी नही देखा था,
तो सोचा
उनकी रिश्तेदार हो।
पहले हमने
एक दूसरे को गौर से देखा,
फिर आये दिन
स्कूल से लौटने के
बाद,
एक दूसरे को
नजरे बचाकर देखने का
सिलसिला शुरू हुआ।
बातचीत अभी तक
नदारद थी।
फिर एक दिन तुम
पड़ोसी के बच्चे
को कुछ कहकर जोर से हँसी।
बच्चा रुआंसा हो गया
पर तुम उससे
ठिठोली करते हुए
हंसती ही जा रही थी।
मुझे ये बात नागवार गुजरी।
और तुम्हारे मसूढ़े
दिखाते दाँत तो बिल्कुल
मेरी चाची
की लड़की जैसे
थे।
जिससे दिन रात
मेरा झगड़ा हुआ करता है।
मैं अपनी सारी जिंदगी
तुम जैसी दया रहित, झगड़ालू
किस्म की लड़की
के साथ बिताने को
कतई तैयार नही था।
और हाँ, याद आया
पिछले साल ही
तो तुम्हारे इसी रिश्तेदार
के बेटे से
मेरे
बड़े भाई की
हाथापाई भी हुई थी।
इन्ही सोचों मे
मशगूल,
मैंने मन ही मन
ये निर्णय
ले ही लिया,
कि अब तुम्हारे यहाँ रहने तक
मैं छत पर तो हरगिज़ नही जाऊँगा!!