लौट आओ मात्रभूमि तुम्हे बुलाती है
माफ मुझे कर देना भगवन, तुझसे पहले सजदा कर आई हूं
तेरी चौखट से पहले ,शहीदों के स्मारक पर नमन कर आई हूं
आज वाह का मंज़र अनोखा नजर आ रहा था
खुली आंखों से जंग आज़ादी की दिखा रहा था
कैसे फिज़ा लूटी देश कि, अबोधो का कतलोआम हुआ
लूटी आबरू औरतो की, बूढों,बच्चो पर जो जुल्म हुआ
जलिया वाला बाग देखा, मेरठ की क्रांति को देखा
देखें लाला जी लाठी खाते,जगदीशपुर का बाबू कुवर देखा
दौड़ता घोड़ा महाराणा का ,जो लिए उन्ही को आता था
हाथ में आज भी वही भाला सुहाता था
दिखे मुझे सुखदेव,आजाद, राजगुरु, रंग दे बसंती गाते हुए
चूम कर सुली को अजर अमर हो जाते हुए
युद्ध देखा काकोरी का , रानी पद्मावती का जौहर देखा
‘ मारो फिरंगी को ‘मंगल पांडे ने उद्घोष किया,
‘ स्वराज मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है’ गंगाधर ने नभभेद दिया
शेरनी रूप धर लक्ष्मी ने , दुश्मन के धड से सर अलग किया
वन्देमातरम के नारो से,वीर हुंकार करने लगे
इंकलाब ज़िंदाबाद से शंखनाद करने लगे
इतने सारे फरिश्ते देख मेरी आंखो मे चमक बढ़ गई
मस्तस्क अपना श्रद्धा से उनके चरणों में धर गई
प्रभु मात्रभूमि अब खुद के कपूतो से ही दामन बचाती है
लौटा दे इसके सपूत ,ये भूमि उन्ही की चरण रज चाहती है
अनुन्य,विनय सुनले अगर तू तो मेरा भी मात्रभूमि को नमन हो जाएगा
दर्शन कर इन वीरो का मेरा भी चारधाम दर्शन हो जाएगा
“”जिनको तू खुद बनाता है वो ही ऐसा इतिहास बनाया करते हैं
हम जैसे तो बस आते ,जाते है और खाख़ बनाया करते हैं”‘
प्रज्ञा गोयल ( कॉपी राईट)